आज बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान हो रहा है। हर वह नागरिक जो पोलिंग बूथ पर जाकर अपने वोट का हक अदा कर रहा है, उसकी उंगली पर नीली स्याही का निशान लगाया जा रहा है। यह निशान सिर्फ एक पहचान नहीं, बल्कि लोकतंत्र में हिस्सा लेने की गर्व भरी गवाही है। यह स्याही कुछ ही देर में गहरी काली हो जाती है और चाहे जितनी कोशिश कर लें, यह महीने भर तक उंगली से नहीं छूटती। हर चुनाव में हम इस निशान को देखते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि यह ‘जादुई’ स्याही कहां से आती है? इसे कौन बनाता है और इसकी कीमत क्या है? आइए, आपको लोकतंत्र के इस ‘पक्के रंग’ की पूरी कहानी बताते हैं।
एक कंपनी, एक गुप्त फॉर्मूलाइस खास स्याही को बनाने का काम देश में सिर्फ एक सरकारी कंपनी करती है। कर्नाटक के मैसूर में स्थित मैसूर पेंट्स एंड वॉर्निश लिमिटेड (MPVL) ही वह कंपनी है, जो भारतीय चुनाव आयोग के लिए यह स्याही तैयार करती है। हैरानी की बात यह है कि इस स्याही का फॉर्मूला टॉप सीक्रेट है! इस फॉर्मूले को नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ऑफ इंडिया (NPL) ने बनाया और MPVL को सौंपा। आज तक इस फॉर्मूले को सार्वजनिक नहीं किया गया। कानूनन, कोई दूसरी कंपनी इसे नहीं बना सकती। 1962 के आम चुनाव में पहली बार इस अमिट स्याही का इस्तेमाल हुआ था, और तब से यह भारतीय लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है।
हैदराबाद की रायडू लेबोरेटरी भी ऐसी स्याही बनाती है, लेकिन वह भारत के चुनावों में इस्तेमाल नहीं होती। उनकी स्याही कई अन्य देशों को निर्यात होती है। लेकिन भारतीय चुनाव आयोग का भरोसा सिर्फ मैसूर की MPVL पर है। यह कंपनी न सिर्फ चुनावी स्याही, बल्कि भारतीय नोटों की छपाई के लिए खास स्याही भी बनाती है।
700 वोटर, सिर्फ 174 रुपये!लोकतंत्र के इस अनमोल निशान की कीमत जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह स्याही छोटी-छोटी कांच की शीशियों में आती है, जिनमें 10 मिलीग्राम स्याही होती है। पिछले लोकसभा चुनाव में ऐसी एक शीशी की कीमत थी 174 रुपये। चुनाव आयोग के मुताबिक, एक शीशी से करीब 700 मतदाताओं की उंगलियों पर निशान लगाया जा सकता है। अगर हिसाब लगाएं, तो एक वोटर पर इस स्याही का खर्च सिर्फ 25 पैसे के आसपास आता है। यानी 25 पैसे में यह सुनिश्चित होता है कि चुनाव निष्पक्ष रहे और कोई दोबारा वोट न डाल सके।
स्याही का जादू, विज्ञान का कमालइस स्याही के न मिटने का राज विज्ञान में छिपा है। इसे बनाने में सिल्वर नाइट्रेट नाम का एक रसायन मुख्य रूप से इस्तेमाल होता है, साथ ही कुछ अन्य गुप्त रसायनों का मिश्रण भी। जैसे ही यह स्याही आपकी उंगली की त्वचा को छूती है, यह 20-30 सेकंड में काम शुरू कर देती है। स्याही में मौजूद सिल्वर नाइट्रेट त्वचा पर मौजूद नमक (सोडियम) के साथ रासायनिक क्रिया करता है, जिससे सोडियम क्लोराइड बनता है। यही वजह है कि स्याही पहले नीली दिखती है, लेकिन कुछ घंटों में गहरी काली हो जाती है।
इसकी खासियत यह है कि पानी, साबुन या डिटर्जेंट से यह और पक्की हो जाती है। कोई भी केमिकल इसे मिटा नहीं सकता। यह निशान तब तक रहता है, जब तक त्वचा के पुराने सेल्स खुद-ब-खुद खत्म न हों, जिसमें एक महीने से ज्यादा वक्त लग सकता है।
भविष्य की तैयारीकंपनी अब भविष्य को देखते हुए नई तकनीक पर काम कर रही है। कांच की शीशियों की जगह मार्कर पेन का विकल्प तलाशा जा रहा है। यह प्रोडक्ट अभी डेवलपमेंट में है, लेकिन अगर यह सफल रहा, तो भविष्य में पोलिंग बूथ पर स्याही लगाना और भी आसान हो जाएगा।
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