इस्तांबुल: पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने डोनाल्ड ट्रंप की तर्ज पर प्रेशर पॉलिटिक्स खेलने की कोशिश की। उन्होंने इंस्ताबुल में तालिबान के साथ होने वाली बैठक से पहले कहा था कि अगर बैठक बेनतीजा रहती है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान पर हमला करेगा। ... ये बैठक बेनतीजा रही है। करीब 9 घंटे की तालिबान और पाकिस्तान के बीच की बैठक बिना किसी औपचारिक समझौते के खत्म हो गई। इसीलिए अब बड़बोले ख्वाजा आसिफ से सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या पाकिस्तान की औकात अफगानिस्तान पर हमला करने की है?
तुर्की में हुई बैठक के दौरान दोनों देशों ने सीमा तनाव कम करने और तत्काल डी-एस्केलेशन पर सहमति जताई है। सूत्रों के मुताबिक, यह वार्ता दोनों पक्षों के बीच बढ़ते अविश्वास के माहौल में हुई, जहां सैन्य, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर बातचीत के दौरान दोनों पक्षों के बीच कई बार काफी तीखी बहस हुई। हालांकि इसके बावजूद दोनों पक्षों ने "अस्थायी शांति" बनाए रखने पर सहमति जताई, जिसे सीनित राहत कहा जा रहा है, स्थायी समाधान नहीं। यानि, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच कभी भी सीजफायर का बुलबुला फूट सकता है।
तालिबान-पाकिस्तान में बैठक क्यों रही बेनतीजा?
दरअसल, बैठक में पाकिस्तान का पूरा फोकस तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानि TTP पर था, जिसका मकसद पाकिस्तान में अफगानिस्तान जैसा इस्लामिक शासन कायम करना है। CNN-News18 ने शीर्ष सूत्रों के हवाले से कहा है कि बैठक के बाद किसी भी तरह की औपचारिक सहमति नहीं बन पाई और किसी भी समझौते पर दस्तखत नहीं किए गये। इस दौरान पाकिस्तानी वार्ताकारों ने अफगानिस्तान की धरती से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की सीमा पार गतिविधियों को रोकने के लिए एक निगरानी तंत्र बनाने की मांग की।
पाकिस्तान का मतलब सीमा पर संयुक्त गश्ती टीम बनाने का विचार था, जिसे तालिबान के वार्ताकारों ने सिरे से खारिज कर दिया। इस्लामाबाद चाहता है कि दोनों देश मिलकर क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट्स पर निगरानी रखें और संयुक्त पेट्रोलिंग शुरू करें, लेकिन तालिबान इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इसके बदले, काबुल ने संकेत दिया कि वह "इंटेलिजेंस शेयरिंग के लिए आपसी तौर पर स्वीकार्य विकल्पों" पर विचार कर सकता है। सूत्र बताते हैं कि यह तालिबान की ओर से सीमित नरमी का संकेत था, लेकिन पाकिस्तान ने इसे बेमतलब बताकर खारिज कर दिया।
अफगान शरणार्थियों के मुद्दे पर भी असहमति
इसके बाद बैठक में दूसरा अहम मुद्दा अफगान शरणार्थियों को लेकर था। पाकिस्तान ने दो टूक कहा कि वह अपने अफगान शरणार्थियों को हर हाल में बाहर निकालकर रहेगा। इस बीच, सीमा पर करीब 1,200 ट्रक फंसे हैं और व्यापारिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। अफगान प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि जबरन शरणार्थी वापसी, गंभीर मानवीय और आर्थिक संकट खड़ा कर देगी। इस गतिरोध को सुलझाने के लिए तुर्की और कतर ने बीच-बचाव की पेशकश की है। जिसके बाद दोनों देशों के बीच एक संयुक्त व्यापार-सुरक्षा कार्यदल बनाने पर सहमति बनी है, जो चरणबद्ध व्यापार बहाली और सुरक्षा आश्वासन सुनिश्चित करेगा। यह तुर्की के लिए एक बड़ा कूटनीतिक लाभ है, जिसने अब तक इन वार्ताओं में शांत मध्यस्थ की भूमिका निभाई है।
वहीं तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने बातचीत के बाद सार्वजनिक रूप से कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने पाकिस्तान के आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जमीन पर किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को आधिकारिक शरण नहीं दी गई है। इसके बाद तालिबान की तरफ से चेतावनी दी गई है कि पाकिस्तान की किसी भी सीमापार सैन्य कार्रवाई को अफगान अमीरात पर आक्रमण माना जाएगा। न्यूज-18 के मुताबिक, भारतीय खुफिया सूत्रों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक "रणनीतिक छल" बताया है। उनका मानना है कि यह बातचीत पाकिस्तान को अस्थायी राहत देने के लिए की गई ताकि वह घरेलू स्तर पर TTP से निपटने की रणनीति फिर से तय कर सके।
तुर्की में हुई बैठक के दौरान दोनों देशों ने सीमा तनाव कम करने और तत्काल डी-एस्केलेशन पर सहमति जताई है। सूत्रों के मुताबिक, यह वार्ता दोनों पक्षों के बीच बढ़ते अविश्वास के माहौल में हुई, जहां सैन्य, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों पर बातचीत के दौरान दोनों पक्षों के बीच कई बार काफी तीखी बहस हुई। हालांकि इसके बावजूद दोनों पक्षों ने "अस्थायी शांति" बनाए रखने पर सहमति जताई, जिसे सीनित राहत कहा जा रहा है, स्थायी समाधान नहीं। यानि, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच कभी भी सीजफायर का बुलबुला फूट सकता है।
तालिबान-पाकिस्तान में बैठक क्यों रही बेनतीजा?
दरअसल, बैठक में पाकिस्तान का पूरा फोकस तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानि TTP पर था, जिसका मकसद पाकिस्तान में अफगानिस्तान जैसा इस्लामिक शासन कायम करना है। CNN-News18 ने शीर्ष सूत्रों के हवाले से कहा है कि बैठक के बाद किसी भी तरह की औपचारिक सहमति नहीं बन पाई और किसी भी समझौते पर दस्तखत नहीं किए गये। इस दौरान पाकिस्तानी वार्ताकारों ने अफगानिस्तान की धरती से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की सीमा पार गतिविधियों को रोकने के लिए एक निगरानी तंत्र बनाने की मांग की।
पाकिस्तान का मतलब सीमा पर संयुक्त गश्ती टीम बनाने का विचार था, जिसे तालिबान के वार्ताकारों ने सिरे से खारिज कर दिया। इस्लामाबाद चाहता है कि दोनों देश मिलकर क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट्स पर निगरानी रखें और संयुक्त पेट्रोलिंग शुरू करें, लेकिन तालिबान इसके लिए तैयार नहीं हुआ। इसके बदले, काबुल ने संकेत दिया कि वह "इंटेलिजेंस शेयरिंग के लिए आपसी तौर पर स्वीकार्य विकल्पों" पर विचार कर सकता है। सूत्र बताते हैं कि यह तालिबान की ओर से सीमित नरमी का संकेत था, लेकिन पाकिस्तान ने इसे बेमतलब बताकर खारिज कर दिया।
अफगान शरणार्थियों के मुद्दे पर भी असहमति
इसके बाद बैठक में दूसरा अहम मुद्दा अफगान शरणार्थियों को लेकर था। पाकिस्तान ने दो टूक कहा कि वह अपने अफगान शरणार्थियों को हर हाल में बाहर निकालकर रहेगा। इस बीच, सीमा पर करीब 1,200 ट्रक फंसे हैं और व्यापारिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। अफगान प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि जबरन शरणार्थी वापसी, गंभीर मानवीय और आर्थिक संकट खड़ा कर देगी। इस गतिरोध को सुलझाने के लिए तुर्की और कतर ने बीच-बचाव की पेशकश की है। जिसके बाद दोनों देशों के बीच एक संयुक्त व्यापार-सुरक्षा कार्यदल बनाने पर सहमति बनी है, जो चरणबद्ध व्यापार बहाली और सुरक्षा आश्वासन सुनिश्चित करेगा। यह तुर्की के लिए एक बड़ा कूटनीतिक लाभ है, जिसने अब तक इन वार्ताओं में शांत मध्यस्थ की भूमिका निभाई है।
वहीं तालिबान के शीर्ष सूत्रों ने बातचीत के बाद सार्वजनिक रूप से कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने पाकिस्तान के आरोपों को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जमीन पर किसी पाकिस्तानी आतंकवादी को आधिकारिक शरण नहीं दी गई है। इसके बाद तालिबान की तरफ से चेतावनी दी गई है कि पाकिस्तान की किसी भी सीमापार सैन्य कार्रवाई को अफगान अमीरात पर आक्रमण माना जाएगा। न्यूज-18 के मुताबिक, भारतीय खुफिया सूत्रों ने इस पूरे घटनाक्रम को एक "रणनीतिक छल" बताया है। उनका मानना है कि यह बातचीत पाकिस्तान को अस्थायी राहत देने के लिए की गई ताकि वह घरेलू स्तर पर TTP से निपटने की रणनीति फिर से तय कर सके।
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