दीपावली पर्व से सम्बन्धित विभिन्न कथाएं जनमानस में प्रचलित हैं। श्रीरामचन्द्र जी के अयोध्या आगमन के उपलक्ष्य में दीपावली मनाने का उल्लेख है, तो कहीं इसे समुद्र मंथन के समय श्रीलक्ष्मी के प्रादुर्भाव से जोड़ा जाता है। कुछ ग्रंथों में उल्लेख आता है कि श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर-वध के बाद सोलह हजार राजकन्याओं के उद्धार पर श्रीकृष्ण का अभिनंदन दीपमाला के रूप में किया है, तो कहीं पांडवों के वनवास से लौटने पर प्रजा द्वारा दीपमालाओं से उनका स्वागत करने का प्रसंग है। कहीं-कहीं राजा पृथु द्वारा पृथ्वी का दोहन करके देश को धन-धान्य से संपन्न बनाने से दीपावली की कथा को जोड़ा जाता है।
धर्मशास्त्रों में दीपावली का एक और उल्लेख वामन अवतार से संबंधित है। भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। जब बलि ने सब कुछ अर्पित कर दिया, तब उन्होंने वरदान माँगा कि कार्तिक मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक जो व्यक्ति दीपदान करेंगे, उन्हें यम का भय न रहेगा और उनके घर सदा लक्ष्मी का वास रहेगा। इस प्रकार दीपदान की परम्परा का आरंभ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब राजा बलि के कारागार में लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवता बंद थे, तब भगवान विष्णु ने वामन रूप में उन्हें मुक्त किया। इसलिए दीपावली के दिन केवल लक्ष्मी ही नहीं, बल्कि समस्त देवी-देवताओं की पूजा का विधान है, ताकि वे लक्ष्मी के साथ हमारे घर में स्थायी रूप से निवास करें। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ उन सब देवताओं का पूजन कर उनके शयन का अपने घर में उत्तम प्रबंध करना चाहिए, जिससे वे लक्ष्मी के साथ वहीं निवास करें और कहीं और न जाएं।
लक्ष्मी चंचला है, जो एक जगह नहीं टिकती हैं, लेकिन जो धर्मशास्त्रों के अनुसार पूर्ण विधि-विधान से दीपावली लक्ष्मी पूजन करते हैं, लक्ष्मी उनके यहां स्थिर भाव से निवास करती हैं। लेकविश्वास है कि दीपावली की रात्रि में महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। वे उसी गृह में प्रवेश करती हैं जो स्वच्छ, प्रकाशमय और सात्त्विक हो। अतः हम सभी को अपने आचरण एवं घर को माता महालक्ष्मी के मनोनुकूल बनाना चाहिए।
धर्मशास्त्रों में दीपावली का एक और उल्लेख वामन अवतार से संबंधित है। भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। जब बलि ने सब कुछ अर्पित कर दिया, तब उन्होंने वरदान माँगा कि कार्तिक मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक जो व्यक्ति दीपदान करेंगे, उन्हें यम का भय न रहेगा और उनके घर सदा लक्ष्मी का वास रहेगा। इस प्रकार दीपदान की परम्परा का आरंभ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार, जब राजा बलि के कारागार में लक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवता बंद थे, तब भगवान विष्णु ने वामन रूप में उन्हें मुक्त किया। इसलिए दीपावली के दिन केवल लक्ष्मी ही नहीं, बल्कि समस्त देवी-देवताओं की पूजा का विधान है, ताकि वे लक्ष्मी के साथ हमारे घर में स्थायी रूप से निवास करें। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी के साथ उन सब देवताओं का पूजन कर उनके शयन का अपने घर में उत्तम प्रबंध करना चाहिए, जिससे वे लक्ष्मी के साथ वहीं निवास करें और कहीं और न जाएं।
लक्ष्मी चंचला है, जो एक जगह नहीं टिकती हैं, लेकिन जो धर्मशास्त्रों के अनुसार पूर्ण विधि-विधान से दीपावली लक्ष्मी पूजन करते हैं, लक्ष्मी उनके यहां स्थिर भाव से निवास करती हैं। लेकविश्वास है कि दीपावली की रात्रि में महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। वे उसी गृह में प्रवेश करती हैं जो स्वच्छ, प्रकाशमय और सात्त्विक हो। अतः हम सभी को अपने आचरण एवं घर को माता महालक्ष्मी के मनोनुकूल बनाना चाहिए।
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