नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के राज्य उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी की अपील खारिज कर दी। आयोग ने कहा कि बीमा कंपनी को पॉलिसी देने से पहले मेडिकल जांच करानी चाहिए। यदि कंपनी जांच नहीं कराती है तो बाद में वह यह दावा नहीं कर सकती कि बीमित व्यक्ति ने जानकारी छिपाई है। जिला आयोग के फैसले को बरकरार रखा गया है।
बीमा कंपनी को पॉलिसी देने से पहले मेडिकल जांच करानी ही होगी, दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी की अपील खारिज करते हुए यह अहम फैसला सुनाया है। आयोग ने कहा कि अगर कंपनी खुद ही मेडिकल जांच नहीं कराती है, तो बाद में यह नहीं कह सकती कि बीमित व्यक्ति ने बीमारी छिपाई थी।
इस फैसले से जिला उपभोक्ता आयोग का वह आदेश बरकरार रहा, जिसमें एलआईसी को सेवा में कमी का दोषी ठहराया गया था और मृतक के परिवार को क्लेम की रकम ब्याज सहित, 30 हजार रुपये मुआवजा और मुकदमेबाजी का खर्च देने का निर्देश दिया गया था।
बीमा कंपने पॉलिसी देने से पहले अपने ग्राहकों की मेडिकल कराए
दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एलआईसी) की जिला आयोग के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है। कल्याणपुरी निवासी अमरेश की शिकायत पर जिला उपभोक्ता आयोग ने 7 फरवरी, 2023 को यह फैसला सुनाया था। आयोग ने साफ कहा कि बीमा कंपनी को पॉलिसी जारी करने से पहले यह पक्का करना चाहिए कि बीमित व्यक्ति को कोई पहले से बीमारी तो नहीं है।
इसके लिए मेडिकल टेस्ट कराना जरूरी है। अगर बीमा कंपनी खुद ही मेडिकल जांच न कराने का फैसला करती है, तो बाद में वह यह बहाना नहीं बना सकती कि बीमित व्यक्ति ने अपनी बीमारी के बारे में जानकारी छुपाई थी।
इस वजह से, जिला उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी को 'सेवा में कमी' का दोषी पाया था। आयोग ने एलआईसी को निर्देश दिया था कि वह शिकायतकर्ता को उसके इंश्योरेंस क्लेम की रकम ब्याज सहित दे। साथ ही, मानसिक परेशानी और मुकदमेबाजी में हुए खर्च के लिए 30 हजार रुपये का मुआवजा भी दे।
एलआईसी को दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग से भी मिला झटका
जिला आयोग के इस फैसले से नाखुश एलआईसी ने दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दायर की थी। एलआईसी ने अपनी दलील में कहा था कि जिला आयोग ने मृतक की मेडिकल हिस्ट्री पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। साथ ही, मेडिकल जांच के फॉर्म में मृतक द्वारा दिए गए गलत जवाबों को भी नजरअंदाज कर दिया गया।
शिकायतकर्ता ने एलआईसी की अपील का जवाब देते हुए कहा कि उनके दिवंगत पति ने एलआईसी के एजेंट को अपनी बीमारी के बारे में सारी जानकारी दे दी थी। लेकिन एलआईसी अपने एजेंटों पर टारगेट पूरा करने का दबाव बनाती है। इसी दबाव के चलते एजेंट ने पॉलिसी प्रपोजल फॉर्म में मृतक की बीमारी का जिक्र नहीं किया। इतना ही नहीं, पॉलिसी लेने के बाद और पॉलिसीधारक की मौत होने तक एलआईसी ने कोई मेडिकल जांच भी नहीं कराई।
राज्य आयोग ने जिला आयोग के फैसले को सही ठहराया
दिल्ली स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन की अध्यक्ष जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की अध्यक्षता वाले कोरम ने 15 अक्टूबर को एलआईसी की अपील को ठुकरा दिया। आयोग ने जिला आयोग के फैसले को सही ठहराया और उसे बरकरार रखा। राज्य आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि पॉलिसी खरीदते समय बीमित व्यक्ति की उम्र लगभग 50 साल थी।
इसके बावजूद, एलआईसी ने बिना किसी मेडिकल जांच के पॉलिसी जारी कर दी। अब एलआईसी यह दलील नहीं दे सकती कि बीमित व्यक्ति को पहले से कोई बीमारी थी, क्योंकि कंपनी खुद ही 50 साल के व्यक्ति की जांच कराने में नाकाम रही। यह फैसला बीमा कंपनियों के लिए एक बड़ा सबक है कि वे पॉलिसी जारी करने से पहले पूरी सावधानी बरतें।
बीमा कंपनी को पॉलिसी देने से पहले मेडिकल जांच करानी ही होगी, दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी की अपील खारिज करते हुए यह अहम फैसला सुनाया है। आयोग ने कहा कि अगर कंपनी खुद ही मेडिकल जांच नहीं कराती है, तो बाद में यह नहीं कह सकती कि बीमित व्यक्ति ने बीमारी छिपाई थी।
इस फैसले से जिला उपभोक्ता आयोग का वह आदेश बरकरार रहा, जिसमें एलआईसी को सेवा में कमी का दोषी ठहराया गया था और मृतक के परिवार को क्लेम की रकम ब्याज सहित, 30 हजार रुपये मुआवजा और मुकदमेबाजी का खर्च देने का निर्देश दिया गया था।
बीमा कंपने पॉलिसी देने से पहले अपने ग्राहकों की मेडिकल कराए
दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एलआईसी) की जिला आयोग के फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया है। कल्याणपुरी निवासी अमरेश की शिकायत पर जिला उपभोक्ता आयोग ने 7 फरवरी, 2023 को यह फैसला सुनाया था। आयोग ने साफ कहा कि बीमा कंपनी को पॉलिसी जारी करने से पहले यह पक्का करना चाहिए कि बीमित व्यक्ति को कोई पहले से बीमारी तो नहीं है।
इसके लिए मेडिकल टेस्ट कराना जरूरी है। अगर बीमा कंपनी खुद ही मेडिकल जांच न कराने का फैसला करती है, तो बाद में वह यह बहाना नहीं बना सकती कि बीमित व्यक्ति ने अपनी बीमारी के बारे में जानकारी छुपाई थी।
इस वजह से, जिला उपभोक्ता आयोग ने एलआईसी को 'सेवा में कमी' का दोषी पाया था। आयोग ने एलआईसी को निर्देश दिया था कि वह शिकायतकर्ता को उसके इंश्योरेंस क्लेम की रकम ब्याज सहित दे। साथ ही, मानसिक परेशानी और मुकदमेबाजी में हुए खर्च के लिए 30 हजार रुपये का मुआवजा भी दे।
एलआईसी को दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग से भी मिला झटका
जिला आयोग के इस फैसले से नाखुश एलआईसी ने दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दायर की थी। एलआईसी ने अपनी दलील में कहा था कि जिला आयोग ने मृतक की मेडिकल हिस्ट्री पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। साथ ही, मेडिकल जांच के फॉर्म में मृतक द्वारा दिए गए गलत जवाबों को भी नजरअंदाज कर दिया गया।
शिकायतकर्ता ने एलआईसी की अपील का जवाब देते हुए कहा कि उनके दिवंगत पति ने एलआईसी के एजेंट को अपनी बीमारी के बारे में सारी जानकारी दे दी थी। लेकिन एलआईसी अपने एजेंटों पर टारगेट पूरा करने का दबाव बनाती है। इसी दबाव के चलते एजेंट ने पॉलिसी प्रपोजल फॉर्म में मृतक की बीमारी का जिक्र नहीं किया। इतना ही नहीं, पॉलिसी लेने के बाद और पॉलिसीधारक की मौत होने तक एलआईसी ने कोई मेडिकल जांच भी नहीं कराई।
राज्य आयोग ने जिला आयोग के फैसले को सही ठहराया
दिल्ली स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन की अध्यक्ष जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की अध्यक्षता वाले कोरम ने 15 अक्टूबर को एलआईसी की अपील को ठुकरा दिया। आयोग ने जिला आयोग के फैसले को सही ठहराया और उसे बरकरार रखा। राज्य आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि पॉलिसी खरीदते समय बीमित व्यक्ति की उम्र लगभग 50 साल थी।
इसके बावजूद, एलआईसी ने बिना किसी मेडिकल जांच के पॉलिसी जारी कर दी। अब एलआईसी यह दलील नहीं दे सकती कि बीमित व्यक्ति को पहले से कोई बीमारी थी, क्योंकि कंपनी खुद ही 50 साल के व्यक्ति की जांच कराने में नाकाम रही। यह फैसला बीमा कंपनियों के लिए एक बड़ा सबक है कि वे पॉलिसी जारी करने से पहले पूरी सावधानी बरतें।
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