नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं। पक्ष व विपक्ष के तमाम नेता जनता जनार्दन से दावे और वादे कर रहे हैं। जहां एक ओर बीजेपी द्वारा लालू यादव पर जंगलराज को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी बीजेपी पर नौकरी समेत तमाम मुद्दों पर पटलवार कर रही है। बिहार की तपती सियासत में राहुल गांधी भी अपने वोट चोरी के मुद्दे को धार देने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि नीतीश कुमार एक बार फिर अपनी सत्ता कायम रखने की कवायद में जुटे हुए हैं।
वोटों के लिए हो रही इस चुनावी जंग में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने सवाल उठाया है कि महागठबंधन ने मुस्लिम डिप्टी सीएम उम्मीदवार क्यों नहीं उतारा? ओवैसी का यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि बिहार में करीब 18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं।
बिहार की 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही AIMIM
AIMIM बिहार की 32 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, खासकर उत्तर बिहार के सीमांचल और मिथिलांचल इलाकों में। इन जगहों पर मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। 2020 के चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीती थीं। ऐसे में महागठबंधन के लिए AIMIM को कम नहीं आंका जा सकता है।
वहीं, महागठबंधन ने मुकेश सहनी, जो निषाद-मल्लाह-सहनी समुदाय से आते हैं, उन्हें डिप्टी सीएम उम्मीदवार बनाया है। उनके समुदाय की आबादी 9 फीसदी बताई जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि 18 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में, एक समावेशी गठबंधन मुस्लिम प्रतिनिधित्व को इतनी अहमियत क्यों नहीं दे रहा? यह एक विरोधाभास है कि एक पार्टी जो खुद को अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधि बताती है, उसने एक छोटे समुदाय के नेता को डिप्टी सीएम बनाया है।
AIMIM क्यों कर रही विरोध?
बिहार चुनाव में AIMIM सोची-समझी रणनीति के तहत मुस्लिम वोटरों को संगठित करने के लिए यह मुद्दा उठा रही है। ओवैसी मुस्लिम वोटरों में सेंध लगातार महागठबंधन में सेंध लगाकर अपनी पार्टी को राज्य में और मजबूत करना चाह रहे हैं। वह उन मुस्लिम मतदाताओं के असंतोष का फायदा उठाना चाहते हैं जो खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के भीतर भी उपेक्षित महसूस करते हैं। दूसरी ओर, ओवैसी का यह कदम महागठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश भी हो सकती है।
तेजस्वी AIMIM को लेकर क्यों है बेफिक्र?
AIMIM जहां एक ओर बिहार में अपना दायरा बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव इसको लेकर बेफिक्र नजर आ रहे हैं। AIMIM ने उत्तर बिहार मे ं32 सीटों पर अपना फोकस किया है, वहीं 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीती थीं लेकिन चार विधायक राजद में शामिल हो गए। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी तेजस्वी यादव AIMIM में जोड़-तोड़ की राजनीति अपना सकते हैं।
AIMIM की जीतें मुख्य रूप से सीमांचल जैसे इलाकों में हुईं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है, अक्सर 60 फीसदी से ऊपर। ऐसे में वहां चुनाव एक तरह से मुस्लिम बनाम गैर-मुस्लिम का हो जाता है। यहां AIMIM ने ध्रुवीकरण का फायदा उठाया। यह जीतें सीधे तौर पर राजद या महागठबंधन के लिए चुनौती नहीं थीं, बल्कि स्थानीय समीकरणों का नतीजा थीं, जहां मुस्लिम मतदाताओं ने उस पार्टी को चुना जो उन्हें अपना हितैषी लगी।
वोटों के लिए हो रही इस चुनावी जंग में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने सवाल उठाया है कि महागठबंधन ने मुस्लिम डिप्टी सीएम उम्मीदवार क्यों नहीं उतारा? ओवैसी का यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि बिहार में करीब 18 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं।
बिहार की 32 सीटों पर चुनाव लड़ रही AIMIM
AIMIM बिहार की 32 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है, खासकर उत्तर बिहार के सीमांचल और मिथिलांचल इलाकों में। इन जगहों पर मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। 2020 के चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में 5 सीटें जीती थीं। ऐसे में महागठबंधन के लिए AIMIM को कम नहीं आंका जा सकता है।
वहीं, महागठबंधन ने मुकेश सहनी, जो निषाद-मल्लाह-सहनी समुदाय से आते हैं, उन्हें डिप्टी सीएम उम्मीदवार बनाया है। उनके समुदाय की आबादी 9 फीसदी बताई जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि 18 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में, एक समावेशी गठबंधन मुस्लिम प्रतिनिधित्व को इतनी अहमियत क्यों नहीं दे रहा? यह एक विरोधाभास है कि एक पार्टी जो खुद को अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधि बताती है, उसने एक छोटे समुदाय के नेता को डिप्टी सीएम बनाया है।
AIMIM क्यों कर रही विरोध?
बिहार चुनाव में AIMIM सोची-समझी रणनीति के तहत मुस्लिम वोटरों को संगठित करने के लिए यह मुद्दा उठा रही है। ओवैसी मुस्लिम वोटरों में सेंध लगातार महागठबंधन में सेंध लगाकर अपनी पार्टी को राज्य में और मजबूत करना चाह रहे हैं। वह उन मुस्लिम मतदाताओं के असंतोष का फायदा उठाना चाहते हैं जो खुद को धर्मनिरपेक्ष पार्टियों के भीतर भी उपेक्षित महसूस करते हैं। दूसरी ओर, ओवैसी का यह कदम महागठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश भी हो सकती है।
तेजस्वी AIMIM को लेकर क्यों है बेफिक्र?
AIMIM जहां एक ओर बिहार में अपना दायरा बढ़ा रही है, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव इसको लेकर बेफिक्र नजर आ रहे हैं। AIMIM ने उत्तर बिहार मे ं32 सीटों पर अपना फोकस किया है, वहीं 2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीती थीं लेकिन चार विधायक राजद में शामिल हो गए। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार भी तेजस्वी यादव AIMIM में जोड़-तोड़ की राजनीति अपना सकते हैं।
AIMIM की जीतें मुख्य रूप से सीमांचल जैसे इलाकों में हुईं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है, अक्सर 60 फीसदी से ऊपर। ऐसे में वहां चुनाव एक तरह से मुस्लिम बनाम गैर-मुस्लिम का हो जाता है। यहां AIMIM ने ध्रुवीकरण का फायदा उठाया। यह जीतें सीधे तौर पर राजद या महागठबंधन के लिए चुनौती नहीं थीं, बल्कि स्थानीय समीकरणों का नतीजा थीं, जहां मुस्लिम मतदाताओं ने उस पार्टी को चुना जो उन्हें अपना हितैषी लगी।
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