नई दिल्ली: तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भारत की छह दिवसीय यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान वे भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात करेंगे। अपनी यात्रा में वे भारत के प्रसिद्ध दाराउल उलूम देवबंद मदरसे और ताजमहल का भी दौरा करेंगे। बता दें कि देवबंद मदरसे में कुछ अफगान छात्र भी पढ़ाई कर रहे हैं।
मुत्तकी तालिबान के पहले ऐसे वरिष्ठ अधिकारी हैं जो भारत की यात्रा कर रहे हैं। वे रूस में मॉस्को फॉर्मेट बैठक में तालिबान का प्रतिनिधित्व करने के बाद गुरुवार को नई दिल्ली पहुंचेंगे। यह यात्रा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत तालिबान के साथ एक कामकाजी रिश्ता बनाना चाहता है। तालिबान ने अगस्त 2021 में अशरफ गनी की सरकार गिरने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, भारत और दुनिया के बाकी देश अभी भी तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं देते हैं।
मुत्तकी को सरकारी प्रोटोकॉल मिलेगादोनों तरफ से मुत्तकी की यात्रा की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक, वे पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली आएंगे। इस प्रतिनिधिमंडल में उप उद्योग और वाणिज्य मंत्री अहमदउल्लाह ज़ाहिद, विदेश मंत्रालय के पहले राजनीतिक प्रभाग के महानिदेशक नूर अहमद नूर (जो दक्षिण एशिया का काम देखते हैं) और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जिया अहमद ताकल शामिल हैं। मुत्तकी को सरकारी प्रोटोकॉल मिलेगा। इसमें हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ उनकी मुलाकात भी शामिल है।
आतंकवाद का मुद्दा रहेगा अहममुत्तकी और जयशंकर की यह मुलाकात पहली बार हो रही है। इससे पहले दोनों नेताओं ने फोन पर बात की थी। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच संबंधों का जायजा लेने का मौका देगी। इसमें सुरक्षा मुद्दे और आतंकवाद से लड़ने के सहयोग पर भी बात होगी। तालिबान की तरफ से अफगानिस्तान के छात्रों, व्यापारियों और मरीजों के लिए वीजा नियमों को और आसान बनाने की मांग की जा सकती है। साथ ही, भारत में तालिबान की उपस्थिति बढ़ाने का मुद्दा भी उठाया जा सकता है।
मुत्तकी क्यों जाना चाहते हैं देवबंद मदरसे? 11 अक्टूबर को मुत्तकी दाराउल उलूम देवबंद मदरसे जाएंगे। कई तालिबान नेता इस मदरसे को बहुत सम्मान देते हैं। पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित दाराउल उलूम हक्कानिया मदरसे की स्थापना दाराउल उलूम देवबंद की तर्ज पर ही हुई थी। कई वरिष्ठ तालिबान कमांडर और नेता इसी मदरसे में पढ़े हैं। दाराउल उलूम हक्कानिया के संस्थापक मौलाना अब्दुल हक ने भारत के बंटवारे से पहले 1947 में देवबंद मदरसे में पढ़ाई की थी और वहां पढ़ाया भी था। उनके बेटे, समी-उल-हक को 'तालिबान का पिता' कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दाराउल उलूम हक्कानिया ने तालिबान कमांडरों और नेताओं को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
कब जाएंगे ताजमहल? 12 अक्टूबर को मुत्तकी आगरा जाकर ताजमहल का दौरा करेंगे। इसके बाद अगले दिन, यानी 13 अक्टूबर को, वे नई दिल्ली में एक प्रमुख उद्योग मंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मिलेंगे। तालिबान सरकार भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर देती रही है। अशरफ गनी सरकार के गिरने और व्यापार के स्थापित तरीकों में आई रुकावट के बाद भारत के साथ व्यापार प्रभावित हुआ था। मुत्तकी 13 अक्टूबर को नई दिल्ली में अफगान समुदाय के लोगों से भी मिलेंगे। वे 15 अक्टूबर को काबुल लौट जाएंगे।
इस दौरे के मायने समझिएमुत्तकी की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत तनावपूर्ण हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का समर्थन कर रहा है। पिछले महीने मुत्तकी की भारत यात्रा की योजना इसलिए टल गई थी क्योंकि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के तहत यात्रा प्रतिबंध में छूट हासिल नहीं कर पाए थे। यह छूट 30 सितंबर को मिली, जब भारत ने इस मामले में सुरक्षा परिषद से संपर्क किया था।
इस यात्रा के पीछे का मकसद जानिए
मुत्तकी तालिबान के पहले ऐसे वरिष्ठ अधिकारी हैं जो भारत की यात्रा कर रहे हैं। वे रूस में मॉस्को फॉर्मेट बैठक में तालिबान का प्रतिनिधित्व करने के बाद गुरुवार को नई दिल्ली पहुंचेंगे। यह यात्रा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत तालिबान के साथ एक कामकाजी रिश्ता बनाना चाहता है। तालिबान ने अगस्त 2021 में अशरफ गनी की सरकार गिरने के बाद काबुल पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, भारत और दुनिया के बाकी देश अभी भी तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं देते हैं।
मुत्तकी को सरकारी प्रोटोकॉल मिलेगादोनों तरफ से मुत्तकी की यात्रा की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। लेकिन सूत्रों के मुताबिक, वे पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ नई दिल्ली आएंगे। इस प्रतिनिधिमंडल में उप उद्योग और वाणिज्य मंत्री अहमदउल्लाह ज़ाहिद, विदेश मंत्रालय के पहले राजनीतिक प्रभाग के महानिदेशक नूर अहमद नूर (जो दक्षिण एशिया का काम देखते हैं) और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जिया अहमद ताकल शामिल हैं। मुत्तकी को सरकारी प्रोटोकॉल मिलेगा। इसमें हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ उनकी मुलाकात भी शामिल है।
आतंकवाद का मुद्दा रहेगा अहममुत्तकी और जयशंकर की यह मुलाकात पहली बार हो रही है। इससे पहले दोनों नेताओं ने फोन पर बात की थी। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच संबंधों का जायजा लेने का मौका देगी। इसमें सुरक्षा मुद्दे और आतंकवाद से लड़ने के सहयोग पर भी बात होगी। तालिबान की तरफ से अफगानिस्तान के छात्रों, व्यापारियों और मरीजों के लिए वीजा नियमों को और आसान बनाने की मांग की जा सकती है। साथ ही, भारत में तालिबान की उपस्थिति बढ़ाने का मुद्दा भी उठाया जा सकता है।
मुत्तकी क्यों जाना चाहते हैं देवबंद मदरसे? 11 अक्टूबर को मुत्तकी दाराउल उलूम देवबंद मदरसे जाएंगे। कई तालिबान नेता इस मदरसे को बहुत सम्मान देते हैं। पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में स्थित दाराउल उलूम हक्कानिया मदरसे की स्थापना दाराउल उलूम देवबंद की तर्ज पर ही हुई थी। कई वरिष्ठ तालिबान कमांडर और नेता इसी मदरसे में पढ़े हैं। दाराउल उलूम हक्कानिया के संस्थापक मौलाना अब्दुल हक ने भारत के बंटवारे से पहले 1947 में देवबंद मदरसे में पढ़ाई की थी और वहां पढ़ाया भी था। उनके बेटे, समी-उल-हक को 'तालिबान का पिता' कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि दाराउल उलूम हक्कानिया ने तालिबान कमांडरों और नेताओं को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
कब जाएंगे ताजमहल? 12 अक्टूबर को मुत्तकी आगरा जाकर ताजमहल का दौरा करेंगे। इसके बाद अगले दिन, यानी 13 अक्टूबर को, वे नई दिल्ली में एक प्रमुख उद्योग मंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में व्यापार और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मिलेंगे। तालिबान सरकार भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर जोर देती रही है। अशरफ गनी सरकार के गिरने और व्यापार के स्थापित तरीकों में आई रुकावट के बाद भारत के साथ व्यापार प्रभावित हुआ था। मुत्तकी 13 अक्टूबर को नई दिल्ली में अफगान समुदाय के लोगों से भी मिलेंगे। वे 15 अक्टूबर को काबुल लौट जाएंगे।
इस दौरे के मायने समझिएमुत्तकी की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत तनावपूर्ण हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि तालिबान तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का समर्थन कर रहा है। पिछले महीने मुत्तकी की भारत यात्रा की योजना इसलिए टल गई थी क्योंकि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के तहत यात्रा प्रतिबंध में छूट हासिल नहीं कर पाए थे। यह छूट 30 सितंबर को मिली, जब भारत ने इस मामले में सुरक्षा परिषद से संपर्क किया था।
इस यात्रा के पीछे का मकसद जानिए
- अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी की पहली भारत यात्रा लगभग एक हफ्ते तक चलेगी। इस दौरान राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर कई महत्वपूर्ण बातचीत होने की उम्मीद है।
- मुत्तकी नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता करेंगे। वे भारत में रह रहे अफगान व्यापारियों से भी मिलेंगे। सूत्रों के मुताबिक, सप्ताहांत पर वे उत्तर प्रदेश के देवबंद भी जा सकते हैं, जहां कुछ अफगान छात्र पढ़ाई कर रहे हैं।
- इस यात्रा से किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद कम है, लेकिन भारत की ओर से अफगानिस्तान को अतिरिक्त विकास सहायता दिए जाने की संभावना है। यह यात्रा इसलिए भी अहम है क्योंकि तालिबान अपनी सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने और भारत के साथ अपने संबंध मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
- अफगान विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान 2.0 ने भारत के खिलाफ किसी भी तरह की बयानबाजी या गतिविधि में शामिल नहीं हुआ है।
- मुत्तकी के एजेंडे में आगरा, मुंबई और हैदराबाद की यात्राएं भी शामिल हैं। वे भारतीय व्यापार मंडलों से भी मिलेंगे ताकि व्यापार और निवेश के अवसरों का पता लगाया जा सके। आगरा, मुंबई और हैदराबाद की यात्राओं की तारीखें अभी तय नहीं हुई हैं। अफगानिस्तान के मुंबई और हैदराबाद में वाणिज्य दूतावास भी हैं।
- इस यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह पर भी चर्चा होगी। यह बंदरगाह अफगानिस्तान के लिए भारत के साथ व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, भारत को इस बंदरगाह पर अमेरिकी प्रतिबंधों से 28 अक्टूबर तक छूट मिल गई है। पहले अमेरिका ने इस बंदरगाह पर प्रतिबंधों से छूट की समय सीमा 29 सितंबर तय की थी। यह बंदरगाह भारत के क्षेत्रीय जुड़ाव की योजनाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- तालिबान मंत्री की भारत यात्रा से पहले, रूस की राजधानी में मॉस्को फॉर्मेट की बैठक हुई थी। इस बैठक में भारत ने अफगानिस्तान के उस रुख का समर्थन किया था जिसमें उसने बाग्राम एयरबेस अमेरिका को सौंपने की बात कही थी।
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