चंद्रभूषण, नई दिल्ली: चार दिन मिसाइलों और गोले-गोलियों की बारिश के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हमले रोकने पर बनी सहमति को लेकर खुशी और जोश सीमा के दोनों तरफ देखा जा रहा है। पाकिस्तान के सभी बड़े शहरों में भड़काऊ नारे लगाते जुलूस निकाले गए हैं। भारत में भी सत्ताधारी पार्टी की ओर से राष्ट्रव्यापी यात्राएं निकालने की शुरुआत हो चुकी है। युद्धोन्माद के चरम बिंदु पर पहुंचकर अचानक यह फैसला क्यों लिया गया, कैसे लिया गया, इस बारे में कई सवाल हैं। ट्रंप के दावे : पहले 10 मई 2025, दिन शनिवार, सीजफायर की घोषणा से थोड़ा पहले और फिर 12 मई 2025, दिन सोमवार को पश्चिम एशिया की यात्रा पर निकलने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर, फिर नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो बातें कहीं उनका सार-संक्षेप यह था कि आपस में बुरी तरह लड़ाई में उलझे भारत और पाकिस्तान अगर एटमी टकराव तक पहुंचते तो दसियों लाख लोग मारे जाते। यह कि अमेरिकी प्रशासन ने दोनों पर व्यापारिक दबाव बनाकर उन्हें सीजफायर के लिए राजी कर लिया। यह भी कि कश्मीर मुद्दे को लेकर दोनों देश ‘सैकड़ों साल से’ लड़ रहे हैं, वे चाहें तो अमेरिका उनके साथ बैठकर यह झगड़ा सुलझाने का प्रयास कर सकता है। पूरी तरह अप्रत्याशित : इसमें शक नहीं कि यह ‘सीजफायर’ ऐसे समय हुआ, जब युद्धवादियों और शांतिवादियों, दोनों के लिए ही यह बात कल्पना से परे थी। इसके दो दिन पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वांस ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही लड़ाई का अमेरिका से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यूरोपीय संघ, रूस या चीन का भी इस मामले में दखल देने का कोई रुख दिखाई नहीं पड़ रहा था। ऐसे में लड़ाई एक ही सूरत में रुक सकती थी कि भारत, पाकिस्तान को पूरी तरह तबाह-बर्बाद भले न करे लेकिन हथियार डालने पर मजबूर कर दे। अलग-अलग वजहें : इसकी जो वजह ट्रंप ने बताई है, उसका जिक्र ऊपर आ चुका है। पाकिस्तान की संसद में इसके दो कारण गिनाए गए हैं। एक यह कि भारत के नए औद्योगिक ठिकाने गुजरात पर उसकी एयरफोर्स के हमले ने भारत के होश ठिकाने लगा दिए। और दूसरा यह कि कुल 95 अरब डॉलर का झटका इंडियन इकॉनमी को लग चुका है, जिसमें 70 अरब आखिरी 24 घंटों में खाक हो गए। ऐसे में भारत सीजफायर न करता तो क्या करता! खुद भारत के सोशल मीडिया में इसकी सबसे चर्चित वजह रही पाकिस्तान में 10 मई को ही आए 4.0 की तीव्रता वाले भूकंप और किसी रेडियोधर्मी लीक की खबर, जिसका कारण वहां के एक परमाणु ठिकाने पर भारत का हवाई हमला बताया गया। पाकिस्तान की पहल : भारत की ओर से अपनी सैन्य कार्रवाई और इसके समापन की जो आधिकारिक व्याख्या की गई है, उसमें इसके पीछे पाकिस्तान की पहल दिखती है। बहरहाल, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 13 मई, दिन मंगलवार को इस बारे में जो कुछ कहा, उसका उद्देश्य डॉनल्ड ट्रंप की बातों का बिंदुवार जवाब देना ही था। प्रवक्ता ने कहा कि लड़ाई के दिनों में अमेरिकी प्रशासन से बातें जरूर हुईं लेकिन उनका कोई व्यापारिक पहलू नहीं था। 10 मई की सुबह होने से पहले दुश्मन के सैन्य ठिकानों पर किए गए हमारे भीषण प्रहार से पाकिस्तान बुरी तरह दहल गया। सीजफायर का प्रस्ताव दोपहर 12 बजे उसी की तरफ से आया, जिसे 3.35 पर स्वीकार कर लिया गया। झूठ का पर्दाफाश : भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति का नाम लेकर न सही लेकिन बहुत सारे ब्यौरे देकर उन्हें सिरे से झूठा करार दिया है। कश्मीर की बात भी इससे सटी हुई है। पिछले कुछ वर्षों से भारत कहता रहा है कि कश्मीर समस्या अब इतनी ही बची है कि जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से पर अपना अवैध कब्जा पाकिस्तान छोड़ दे। यह भी कि कश्मीर पर दोनों देशों में कभी कोई बात होती भी है तो किसी तीसरे पक्ष की कोई जगह वहां नहीं होगी। अंकुश होगा या नहीं : ध्यान रहे, अमेरिका और भारत की व्याख्या में दिख रहा यह अंतर सिर्फ अतीत की एक घटना के महीन भाषाई ब्यौरों तक सीमित नहीं है। इसका संबंध इस बात से है कि भारत और पाकिस्तान के बीच खिंची लंबी सीमा रेखा और नियंत्रण रेखा के हर सुगम और दुर्गम क्षेत्र में सीजफायर की ठोस शर्तें तय हो पाएंगी या नहीं, और इन्हें तय करने से लेकर लागू करने तक दोनों पक्ष कोई अर्जेंसी (बाध्यता) महसूस करेंगे या नहीं। कैसे लौटे सुकून : ‘सीजफायर’ में अमेरिका का कोई रोल नहीं था तो क्या पाकिस्तान इस पर पराजित पक्ष की तरह अमल करने जा रहा है? ऐसा कुछ हो भी तो पाकिस्तान की सेना अपने पब्लिक परसेप्शन के खिलाफ नहीं जाएगी। ध्यान रहे, एक बार सीमा पर दोनों तरफ के हर संभव बिंदु से गोलियां चलने लगें, फिर दोनों ओर के डीजीएमओ ऊपर का हुकुम मानकर शांति बनाए रखने का फैसला तो कर लेते हैं, लेकिन सरहदी बस्तियों का सुकून वापस नहीं लौटता। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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