प्रवीन मोहता, कानपुर: कम लोगों को पता होगा कि कानपुर के सीएसए यूनिवर्सिटी परिसर में अंग्रेजों का बनवाया एक तालाब मौजूद है। कचरे से भरे और सूखे तालाब का बीते दिनों जिला प्रशासन ने जीर्णोद्धार का काम शुरू करवा दिया है। यह तालाब 1837 में कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में पड़े भयंकर अकाल के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी ने खुदवाया था। अगले एक हफ्ते में सूखे तालाब को साफ करने के बाद आसपास फूलदार पौधे और घास लगाने के साथ बेंच भी लगवाई जाएंगी।चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के मुख्य गेट से अंदर जाते ही बाएं हाथ पर एक तालाब है। करीब ही बोर्ड में लिखा है कि ‘मैजिस्ट्रेट आईसी विल्सन ने 1837-38 में भूख से मर रहे गरीबों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए कानपुर के नागरिकों के स्वैच्छिक योगदान के साथ इस तालाब का निर्माण करवाया गया। 12 हजार रुपये व्यय करके कैदियों के परिश्रम से इसे पूरा किया गया।’ इतिहासकार मनोज कपूर ने बताया कि ‘कानपुर का इतिहास’ किताब में बताया गया है कि 1837-38 में पानी न बरसने के कारण कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में देश में भयंकर अकाल पड़ा। हजारों आदमी मर गए। बुंदेलखंड और आसपास से हजारों अकाल पीड़ित कानपुर आए। इनको काम देने के लिए सरकार ने नवाबगंज में जेल के पास एक तालाब खुदवाया। गिलिस बाजार के पास एक गिरिजाघर भी बनवाया, जिसे आज क्राइस्टचर्च के नाम से जाना जाता है। लाशों से पट गई थी गंगाबकौल कपूर, ‘रेवेन्यू हिस्ट्री ऑफ कानपुर डिस्ट्रिक्ट’ में लिखा है कि लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। वे भुखमरी से बचने के लिए दूसरे जिलों की तरफ पलायन कर गए थे। राहत का काम नवंबर-1837 से जुलाई-1838 तक चला। 1909 के ‘कानपुर के जिला गजेटियर’ में एचआर नेविल ने लिखा है कि यह पहला मौका था, जब सरकार ने राहत कार्य शुरू किए थे। कानपुर के लोगों ने प्रतिदिन 1000 लोगों का खर्च उठाया। कानपुर में गंगा में काफी कम पानी रह गया था। गंगा लाशों से पटी पड़ी थी। कुलपति ने की पहलबीते दिनों सीएसए यूनिवर्सिटी के कुलपति आनंद कुमार सिंह ने सीडीओ दीक्षा जैन से तालाब का जीर्णोद्धार करवाने के लिए कहा था। विवि में इसके लिए बजट नहीं था। तकनीकी रूप से शहरी क्षेत्र में मनरेगा के तहत काम नहीं हो सकता था। बीते दिनों जिला प्रशासन ने जॉनसन मैथी केमिकल्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 1.643 एकड़ में फैले तालाब के जीर्णोद्धार के लिए चुना। तालाब की जल संचयन क्षमता बढ़ाई जाएगी।
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