पटनाः इस बार का विधानसभा चुनाव में एक नया ट्रेंड उभरा है। कोइरी (कुशवाहा) जाति राजनीति केन्द्र में आ गयी है। इस जाति की आबादी सिर्फ 4.21 फीसदी है। लेकिन इसके बावजूद लगभग सभी दलों ने इस बार कोइरी जाति पर पहले से अधिक भरोसा जताया है। अचानक ही राजनीतिक दलों का कोइरी जाति के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा है। कोइरी समुदाय को सबसे अधिक राजद ने 15 टिकट दिये हैं। इसके बाद जदयू का नम्बर है। जदयू ने 13 कोइरी उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा के 7, कांग्रेस के 5 और भाकपा माले के 5 कोइरी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। कोइरी समुदाय को टिकट देने में महगठबंधन आगे है। महागठबंधन ने 28 जब कि एनडीए ने 24 टिकट दिये हैं। राजद में यादव के बाद जो दूसरी प्रमुख जाति है वह कोइरी ही है।
राजद का नया समीकरण : यादव-कोइरी-मुस्लिम
बुजुर्ग और सेहत की समस्याओं से जूझ रहे लालू यादव अब पवेलियन में बैठ कर मैच देख रहे हैं। मैदान पर बैटिंग तेजस्वी कर रहे हैं। वे वक्त की मांग के हिसाब से नयी टीम बना रहे हैं। जीत की नयी रणनीति बना रहे हैं। उनकी कोशिश है कि यादव और मुस्लिम के साथ कोइरी को भी इस समीकरण में जोड़ा जाय। अगर यादव-कोइरी- मुस्लिम का नया समीकरण बनेगा तो सत्ता की राह आसान हो जाएगी। इस तथ्य का दूसरा पहलू ये है कि अगर कोइरी राजद से जुडेंगे तो जदयू कमजोर होगा। वह इसलिए क्यों कि अभी तक लव-कुश (कोइरी- कुर्मी) को जदयू का कोर वोटर माना जाता है।
यादव कम हुए, कोइरी बढ़े
राजद के 141 उम्मीदवारों में 51 यादव हैं। इस बार यादव प्रत्याशियों की संख्या कम हुई है। पिछले चुनाव में 58 यादव प्रत्याशी थे। यानी इस बार सात कम हैं। माना जाता है कि तेजस्वी यादव के प्रभाव से ऐसा हुआ। तेजस्वी अब पार्टी में अन्य जातियों को महत्व देना चाहते हैं। इस बार उन्होंने कोइरी जाति पर दांव खेला है। उन्होंने कोइरी जाति को अति पिछड़ी जातियों से भी अधिक अहमियत दी है। अति पिछड़ा वर्ग (कई जातियां) के जहां 14 उम्मीदवार हैं वही अकेले कोइरी जाति के 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
नीतीश के आधार मत में सेंध लगाने की कोशिश
इस मामले में नीतीश कुमार भी पीछे नहीं हैं। जदयू में कुर्मी जाति को सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने कोइरी जाति को कुर्मी से एक सीट अधिक दी है। जदयू में 13 कोइरी तो 12 कुर्मी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। सन 2000 में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार की समता पार्टी से विधायक बने थे। वे जन्दाहा (अब महनार) से जीते थे। नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा एक साथ हुए। इसके बाद नीतीश कुमार ने कुर्मी-कुशवाहा (लव-कुश) की एकता पर बल देकर पार्टी को आगे बढ़ाया। राजद, जदयू के इसी बोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है।
राजद का नया समीकरण : यादव-कोइरी-मुस्लिम
बुजुर्ग और सेहत की समस्याओं से जूझ रहे लालू यादव अब पवेलियन में बैठ कर मैच देख रहे हैं। मैदान पर बैटिंग तेजस्वी कर रहे हैं। वे वक्त की मांग के हिसाब से नयी टीम बना रहे हैं। जीत की नयी रणनीति बना रहे हैं। उनकी कोशिश है कि यादव और मुस्लिम के साथ कोइरी को भी इस समीकरण में जोड़ा जाय। अगर यादव-कोइरी- मुस्लिम का नया समीकरण बनेगा तो सत्ता की राह आसान हो जाएगी। इस तथ्य का दूसरा पहलू ये है कि अगर कोइरी राजद से जुडेंगे तो जदयू कमजोर होगा। वह इसलिए क्यों कि अभी तक लव-कुश (कोइरी- कुर्मी) को जदयू का कोर वोटर माना जाता है।
यादव कम हुए, कोइरी बढ़े
राजद के 141 उम्मीदवारों में 51 यादव हैं। इस बार यादव प्रत्याशियों की संख्या कम हुई है। पिछले चुनाव में 58 यादव प्रत्याशी थे। यानी इस बार सात कम हैं। माना जाता है कि तेजस्वी यादव के प्रभाव से ऐसा हुआ। तेजस्वी अब पार्टी में अन्य जातियों को महत्व देना चाहते हैं। इस बार उन्होंने कोइरी जाति पर दांव खेला है। उन्होंने कोइरी जाति को अति पिछड़ी जातियों से भी अधिक अहमियत दी है। अति पिछड़ा वर्ग (कई जातियां) के जहां 14 उम्मीदवार हैं वही अकेले कोइरी जाति के 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं।
नीतीश के आधार मत में सेंध लगाने की कोशिश
इस मामले में नीतीश कुमार भी पीछे नहीं हैं। जदयू में कुर्मी जाति को सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने कोइरी जाति को कुर्मी से एक सीट अधिक दी है। जदयू में 13 कोइरी तो 12 कुर्मी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। सन 2000 में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार की समता पार्टी से विधायक बने थे। वे जन्दाहा (अब महनार) से जीते थे। नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा एक साथ हुए। इसके बाद नीतीश कुमार ने कुर्मी-कुशवाहा (लव-कुश) की एकता पर बल देकर पार्टी को आगे बढ़ाया। राजद, जदयू के इसी बोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है।
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