पिथौरागढ़: उत्तराखंड में रविवार को सैकड़ों लोगों ने पिथौरागढ़ के रामलीला मैदान में प्रदर्शन किया। यह विरोध हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में हल्द्वानी में 7 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में मृत्युदंड पाए एक आरोपी को बरी करने के फैसले के खिलाफ था। इस दिल दहला देने वाली वारदात को ‘लिटिल निर्भया’ केस कहा गया था, जिसने पूरे उत्तराखंड को झकझोर दिया था।
प्रदर्शनकारियों ने उपजिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करे। वहीं, काली नदी के किनारे बसे सीमांत कस्बे जौलजीबी में भी लोगों ने प्रदर्शन किया।
पीड़िता के चाचा ने अल्टीमेटम दिया कि अगर 3 दिन के भीतर सरकार पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करती है तो वे आत्मदाह करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया, "सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस केस को मजबूती से नहीं रख पाई।" बच्ची के पिता ने भी नाराजगी जताई और कहा कि परिवार को सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा, "हमें बरी किए जाने की खबर रिश्तेदारों से मिली। सरकार ने हमें अंधेरे में रखा।"
अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा- SCबता दें जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने ट्रायल कोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट के दोषसिद्धि और मृत्युदंड के आदेश को खारिज कर दिया। 7 साल की सजा पाए एक अन्य आरोपी को भी बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच में कई खामियां थीं और अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित करने में नाकाम रहा, क्योंकि पूरा मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था।
ये है पूरा मामला
वर्ष 2014 में 18 नवंबर को पिथौरागढ़ की एक 7 साल की मासूम बच्ची हल्द्वानी के काठगोदाम में शादी में शामिल होने के लिए परिवार के साथ आई थी। 20 नवंबर को शादी के दौरान उसके साथ दरिंदगी की गई, इसके बाद उसका खून से लथपथ शव बरामद हुआ था। मामले में पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया और जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गए। मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें से एक को कोर्ट ने दोषमुक्त मानकर बरी कर दिया था। दूसरे को पांच साल की सजा और तीसरे अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद अभियुक्त सुप्रीम कोर्ट गए, जहां से मुख्य अभियुक्त को बरी कर दिया गया ळै।
प्रदर्शनकारियों ने उपजिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करे। वहीं, काली नदी के किनारे बसे सीमांत कस्बे जौलजीबी में भी लोगों ने प्रदर्शन किया।
पीड़िता के चाचा ने अल्टीमेटम दिया कि अगर 3 दिन के भीतर सरकार पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करती है तो वे आत्मदाह करेंगे। उन्होंने आरोप लगाया, "सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस केस को मजबूती से नहीं रख पाई।" बच्ची के पिता ने भी नाराजगी जताई और कहा कि परिवार को सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने कहा, "हमें बरी किए जाने की खबर रिश्तेदारों से मिली। सरकार ने हमें अंधेरे में रखा।"
अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में नाकाम रहा- SCबता दें जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की बेंच ने ट्रायल कोर्ट और उत्तराखंड हाईकोर्ट के दोषसिद्धि और मृत्युदंड के आदेश को खारिज कर दिया। 7 साल की सजा पाए एक अन्य आरोपी को भी बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच में कई खामियां थीं और अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित करने में नाकाम रहा, क्योंकि पूरा मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था।
ये है पूरा मामला
वर्ष 2014 में 18 नवंबर को पिथौरागढ़ की एक 7 साल की मासूम बच्ची हल्द्वानी के काठगोदाम में शादी में शामिल होने के लिए परिवार के साथ आई थी। 20 नवंबर को शादी के दौरान उसके साथ दरिंदगी की गई, इसके बाद उसका खून से लथपथ शव बरामद हुआ था। मामले में पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया और जगह-जगह प्रदर्शन शुरू हो गए। मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें से एक को कोर्ट ने दोषमुक्त मानकर बरी कर दिया था। दूसरे को पांच साल की सजा और तीसरे अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद अभियुक्त सुप्रीम कोर्ट गए, जहां से मुख्य अभियुक्त को बरी कर दिया गया ळै।
You may also like
कनाडा: 'सिख फॉर जस्टिस' ने भारतीय कॉन्सुलेट को घेरने की धमकी दी, ये संगठन भारत के ख़िलाफ़ क्यों है आक्रामक?
पीएम मोदी के जीवन पर बनी फिल्में और वेब सीरीज हैं खास, दिखाती हैं प्रेरणादायी यात्रा
Hollywood एक्ट्रेस सिडनी स्वीनी को बॉलीवुड फिल्म के लिए मिला बड़ा प्रस्ताव, फीस जानकर उड़ जाएंगे होश
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रतिक्रिया
Health Tips-क्या आप रोजाना लिपस्टिक लगाती हैं, जान लिजिए इसके नुकसान