पटना: सूर्यगढ़ा विधासनसभा की चुनावी जंग के त्रिकोणात्मक संघर्ष में फंसते ही केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। लेकिन इससे इतर सूर्यगढ़ा का संघर्ष इस बात का भी गवाह बनने जा रहा है कि उसे राजनीतिक लटके-झटके वाला दलीय प्रत्याशी चाहिए या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जनता का आदमी। दिलचस्प तो यह है कि सूर्यगढ़ा विधानसभा का चुनाव लगभग तीन दशक के बाद उस मोड़ पर पहुंच गया है, जहां एक निर्दलीय उम्मीदवार रविशंकर प्रसाद उर्फ अशोक सिंह दलीय प्रत्याशी रामानंद मंडल(जदयू) और राजद के उम्मीदवार प्रेम सागर को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। जानिए सूर्यगढ़ा विधासनसभा क्यों इस बार हॉट सीट बन गया है।   
   
   
सूर्यगढ़ा पर ललन सिंह का दांव!
सूर्यगढ़ा विधासनसभा सीट तब से हॉट सीट बन गया जब केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने वहां के सीटिंग विधायक को टिकट से वंचित कर दिया। इस टिकट को न देने को सही करार देने के लिए केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने दो तर्क भी दिए। पहला यह कि लखीसराय का आतंक (सीटिंग विधायक प्रहलाद यादव) को टिकट किसी भी हाल में नहीं मिलेगा। दूसरा यह कि 2020 में सूर्यगढ़ा विधासनसभा जदयू की सीट रही थी। राजद के विधायक रहे प्रहलाद यादव की भागीदारी इसलिए मांगी जा रही थी कि उन्होंने शक्ति परीक्षण में नीतीश सरकार को गिरने से बचाया था। उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के प्रयास से राजद विधायक प्रहलाद यादव भाजपा में आए थे। यही वजह भी है कि केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है।
     
   
निर्दलीय उम्मीदवार का भविष्य
सूर्यगढ़ा विधासनसभा की जनता आमतौर पर दलीय प्रत्याशी को ही जीत दिलाती रही है। पर यहां की जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों को भी जीत दिलाई है। 1977 बिहार में संपूर्ण क्रांति के लिए जाना जाता है। एक क्रांति उस वर्ष सूर्यगढ़ा में भी हुई। यहां की जनता ने तब से प्रत्याशी को नकारते रामजी मंडल को जिताया। तब रामजी मंडल ने एक लाख 18 हजार से भी ज्यादा वोटों से CPI की उम्मीदवार सुनैना शर्मा को हराया था। 1995 विधानसभा चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार के प्रति जनता का विश्वास बना और तब प्रहलाद यादव ने महागठबंधन से सीपीआई के उम्मीदवार प्रमोद शर्मा को हराया था। 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने रामानंद मंडल को चुनावी जंग में उतारा है तो महागठबंधन ने राजद के उम्मीदवार प्रेम सागर को। इन दोनों के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार रवि शंकर सिंह उर्फ अशोक सिंह ने उतर कर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बना डाला है।
   
   
क्या है सूर्यगढ़ा का सोशल इंजीनियरिंग?
सूर्यगढ़ा विधासनसभा क्षेत्र में भूमिहार और कुर्मी जाति का वर्चस्व है। इसके बाद यादवों की संख्या ज्यादा है। इस बार कुर्मी और यादव के दलीय उम्मीदवार खड़े हैं।लेकिन भूमिहार जाति को किसी भी प्रमुख दल ने टिकट नहीं दिया है। यहां के चुनाव को संतुलित करने में पासवान के साथ वैश्य और अतिपिछड़ा वोट का बहुत महत्व है। जदयू प्रत्याशी रामानंद मंडल के साथ जदयू के आधार वोट कुर्मी के साथ-साथ एनडीए के साथी दलों का भी वोट है। राजद के उम्मीदवार प्रेम सागर के साथ एमवाई समीकरण के एक बड़े आधार के साथ साथी दलों का भी जातीय गणित है।
   
   
निर्दलीय उम्मीदवार भी कम नहीं
समग्रता में निर्दलीय प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह की छवि जनता के आदमी की तरह बन रही है। 2020 विधानसभा चुनाव हारने के बाद पिछले पांच वर्षों से क्षेत्र में लगातार बने रहने के कारण हर जाति में इनकी पकड़ है। अपनी जाति से किसी को टिकट न देने के कारण भूमिहार वोटरों का समर्थन रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह की तरफ झुकता दिखाई दे रहा है। अब ऐसे में जो उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार की जाति के जितने वोटों में सेंधमारी कर पाएगा, उसकी स्थिति उनकी उतनी ही अच्छी हो पाएगी।
  
सूर्यगढ़ा पर ललन सिंह का दांव!
सूर्यगढ़ा विधासनसभा सीट तब से हॉट सीट बन गया जब केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने वहां के सीटिंग विधायक को टिकट से वंचित कर दिया। इस टिकट को न देने को सही करार देने के लिए केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने दो तर्क भी दिए। पहला यह कि लखीसराय का आतंक (सीटिंग विधायक प्रहलाद यादव) को टिकट किसी भी हाल में नहीं मिलेगा। दूसरा यह कि 2020 में सूर्यगढ़ा विधासनसभा जदयू की सीट रही थी। राजद के विधायक रहे प्रहलाद यादव की भागीदारी इसलिए मांगी जा रही थी कि उन्होंने शक्ति परीक्षण में नीतीश सरकार को गिरने से बचाया था। उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के प्रयास से राजद विधायक प्रहलाद यादव भाजपा में आए थे। यही वजह भी है कि केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के लिए ये सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है।
निर्दलीय उम्मीदवार का भविष्य
सूर्यगढ़ा विधासनसभा की जनता आमतौर पर दलीय प्रत्याशी को ही जीत दिलाती रही है। पर यहां की जनता ने निर्दलीय प्रत्याशियों को भी जीत दिलाई है। 1977 बिहार में संपूर्ण क्रांति के लिए जाना जाता है। एक क्रांति उस वर्ष सूर्यगढ़ा में भी हुई। यहां की जनता ने तब से प्रत्याशी को नकारते रामजी मंडल को जिताया। तब रामजी मंडल ने एक लाख 18 हजार से भी ज्यादा वोटों से CPI की उम्मीदवार सुनैना शर्मा को हराया था। 1995 विधानसभा चुनाव में एक निर्दलीय उम्मीदवार के प्रति जनता का विश्वास बना और तब प्रहलाद यादव ने महागठबंधन से सीपीआई के उम्मीदवार प्रमोद शर्मा को हराया था। 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने रामानंद मंडल को चुनावी जंग में उतारा है तो महागठबंधन ने राजद के उम्मीदवार प्रेम सागर को। इन दोनों के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार रवि शंकर सिंह उर्फ अशोक सिंह ने उतर कर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बना डाला है।
क्या है सूर्यगढ़ा का सोशल इंजीनियरिंग?
सूर्यगढ़ा विधासनसभा क्षेत्र में भूमिहार और कुर्मी जाति का वर्चस्व है। इसके बाद यादवों की संख्या ज्यादा है। इस बार कुर्मी और यादव के दलीय उम्मीदवार खड़े हैं।लेकिन भूमिहार जाति को किसी भी प्रमुख दल ने टिकट नहीं दिया है। यहां के चुनाव को संतुलित करने में पासवान के साथ वैश्य और अतिपिछड़ा वोट का बहुत महत्व है। जदयू प्रत्याशी रामानंद मंडल के साथ जदयू के आधार वोट कुर्मी के साथ-साथ एनडीए के साथी दलों का भी वोट है। राजद के उम्मीदवार प्रेम सागर के साथ एमवाई समीकरण के एक बड़े आधार के साथ साथी दलों का भी जातीय गणित है।
निर्दलीय उम्मीदवार भी कम नहीं
समग्रता में निर्दलीय प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह की छवि जनता के आदमी की तरह बन रही है। 2020 विधानसभा चुनाव हारने के बाद पिछले पांच वर्षों से क्षेत्र में लगातार बने रहने के कारण हर जाति में इनकी पकड़ है। अपनी जाति से किसी को टिकट न देने के कारण भूमिहार वोटरों का समर्थन रविशंकर प्रसाद सिंह उर्फ अशोक सिंह की तरफ झुकता दिखाई दे रहा है। अब ऐसे में जो उम्मीदवार अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार की जाति के जितने वोटों में सेंधमारी कर पाएगा, उसकी स्थिति उनकी उतनी ही अच्छी हो पाएगी।
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