नई दिल्ली: समाज में अपराध सबसे ज्यादा कौन करता है? किस तरह के लोगों में अपराधिक प्रवृत्ति ज्यादा होती है। पुलिसवाले यातना क्यों देते हैं? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब मिलते हैं सामाजिक संस्था 'कॉमन कॉज' और शोध संस्था 'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज' (सीएसडीएस) की एक रिपोर्ट में। यह रिपोर्ट दिल्ली समेत 16 राज्यों में करीब 8,200 पुलिसवालों पर एक सर्वे के आधार पर तैयार की गई है। 'भारत में पुलिस-व्यवस्था की स्थिति रिपोर्ट 2025: पुलिस प्रताड़ना और गैरजवाबदेही' नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 से 2022 के बीच 1100 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का है। इन मौतों के लिए अब तक किसी को दोषी भी नहीं पाया गया है। जानते हैं-असल हकीकत। टॉर्चर का कितना समर्थन करते हैं पुलिसवाले, जानिएइस अध्ययन में पाया गया कि दो-तिहाई पुलिस वाले यातना देने को उचित समझते हैं। 30 फीसदी पुलिसकर्मी टॉर्चर करने को ज्यादा हद तक सही मानते हैं तो 32 फीसदी इसे कुछ हद तक सही मानते हैं। वहीं, महज 15 फीसदी ने ही यातना देने का समर्थन किया। यह राय कांस्टेबल और आईपीएस अफसर थे। यातना का सबसे ज्यादा समर्थन झारखंड (50%) और गुजरात (49%) के पुलिस अफसरों में मिला और सबसे कम समर्थन केरल (1%) और नगालैंड (8%) के अफसरों ने किया।
पुलिस अफसर भी टॉर्चर देने का समर्थन, चिंताचिंताजनक हालात ये है कि पुलिस के सबसे आला अफसर यहां तक कि आईपीएस अफसर भी यातना दिए जाने का समर्थन करते हैं और कानून की प्रक्रिया को मानते नहीं हैं। करीब दो-तिहाई पुलिस अफसरों ने यातना देने का किसी न किसी रूप में समर्थन किया। वहीं, 30 फीसदी अफसरों का यह भी मानना था कि किसी संगीन अपराध को हल करने के लिए 'थर्ड-डिग्री' टॉर्चर का इस्तेमाल करना सही है। तलवों पर मारना, अंगों पर मिर्ची पाउडर छिड़कना, अभियुक्त को उल्टा लटकाना जैसे यातना के तरीके 'थर्ड डिग्री टॉर्चर' के तहत आते हैं। एनकाउंटर को कितना सही मानते हैं पुलिसवाले22 फीसदी पुलिसवालों का मानना है कि 'खतरनाक अपराधियों' को अदालती प्रक्रिया का मौका उपलब्ध कराने से ज्यादा असरदार है, उन्हें मार देना या उनका 'एनकाउंटर' कर देना। उनका मानना था कि इससे समाज का भला होगा। हालांकि, 74 फीसदी पुलिस वालों ने कहा कि पुलिस को उन्हें पकड़ना चाहिए और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। पुलिस खुद को कानून का रखवाला मानती है। 28 फीसदी अफसरों का मानना है कि कानूनी प्रक्रिया कमजोर है और अपराध रोकने में धीमी है। वहीं, 66 फीसदी का मानना है कि कानून में खामियां हैं, लेकिन फिर भी उससे अपराध रुकता है।
गिरफ्तारी के समय क्या पुलिस मानती है कानूनसर्वे के अनुसार, केवल 40 फीसदी अफसरों ने माना है कि किसी को गिरफ्तार करते समय कानूनी प्रक्रिया का हमेशा पालन किया जाता है। जैसे किसी को अरेस्ट मेमो बनाकर दस्तखत करवाना, गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के घर वालों को गिरफ्तारी के बारे में बताना और मेडिकल जांच करवाना वगैरह। अपहरण, चेन छीनने और गौहत्या में कौन आगेपुलिसवालों के एक तबके का यह भी मानना है कि यौन हिंसा, बच्चे-बच्चियों के अपहरण, चेन छीनने और गौहत्या जैसे अपराध के लिए भीड़ के संदिग्धों को सजा देना सही है। गुजरात के पुलिसकर्मियों में भीड़ की हिंसा के प्रति सबसे अधिक समर्थन देखा गया। वहीं, केरल के पुलिसकर्मियों में यह समर्थन सबसे कम था। सबसे ज्यादा दिल्ली और राजस्थान के पुलिसकर्मियों का मानना है कि मुसलमान स्वाभाविक रूप से अपराध करने के आदी हैं। वहीं, गुजरात के दो तिहाई पुलिस अफसर दलितों के बारे में ऐसी राय रखते हैं।
क्या किसी समुदाय से है अपराध का रिश्तापुलिसवालों से जब यह पूछा गया कि किस समुदाय के लोग स्वाभाविक रूप से ज्यादा अपराध करने के आदी हैं तो उनमें से ज्यादातर का मानना था कि अमीर और ताकतवर लोगों में अपराध की प्रवृत्ति ज्यादा है। इसके बाद मुसलमान, झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग, प्रवासी वगैरह आते हैं। सर्वे में पाया गया कि 19 फीसदी हिंदू पुलिसकर्मियों का मानना था कि मुसलमान 'काफी हद तक' स्वाभाविक रूप से अपराध करने के आदी हैं और 34 फीसदी का मानना था कि वो कुछ हद तक अपराध करने के आदी हैं। वहीं, 18 फीसदी मुसलमान पुलिसकर्मियों का मानना था कि मुसलमान काफी हद तक अपराध करने के आदी हैं। वहीं, 22 फीसदी का मानना था कि वे कुछ हद तक अपराध करने का आदी हैं। पुलिस हिरासत में कितनी मौत हो जाती हैंएनसीआरबी और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) के पास अलग-अलग आंकड़े उपलब्ध हैं। साल 2020 में एनसीआरबी के मुताबिक़, 76 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई। वहीं, एनएचआरसी के मुताबिक 90 लोगों की हिरासत में हत्या हुई। सबसे ज्यादा पुलिस कस्टडी में मौतें महाराष्ट्र और गुजरात में हुई हैं। एनएचआरसी के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2023 में पुलिस एनकाउंटर में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई हैं।

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