रोम, 18 अगस्त . पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के अमेरिका में दिए गए परमाणु बयान और उसके तुरंत बाद बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) व इसकी विशिष्ट माजिद ब्रिगेड को विदेशी आतंकी संगठन (एफटीओ) घोषित करने की घोषणा इस व्यापक वास्तविकता को उजागर करती है कि दक्षिण एशिया की प्रतिद्वंद्विताएं केवल उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं हैं. यह बात इंडो-मेडिटेरेनियन इनिशिएटिव (सीएनकेवाई) की एक रिपोर्ट में कही गई है.
हाल ही में अमेरिका यात्रा के दौरान टाम्पा में एक सभा को संबोधित करते हुए मुनीर ने कहा था कि पाकिस्तान “भारत के बांध बनाने का इंतजार करेगा और जब वे ऐसा करेंगे, तो हम उसे नष्ट कर देंगे.” भारत के विदेश मंत्रालय (एमईए) ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख की इन टिप्पणियों को “परमाणु धमकी” करार देते हुए आलोचना की. मंत्रालय ने कहा कि पाकिस्तान की परमाणु कमान एवं नियंत्रण प्रणाली को लेकर पहले से ही गंभीर संदेह हैं क्योंकि सेना “आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम करती है.” भारत ने यह भी खेद जताया कि ऐसे बयान “एक मित्रतापूर्ण तीसरे देश की धरती से” दिए गए.
मुनीर के बयान के कुछ ही घंटों बाद ट्रंप प्रशासन ने बीएलए और माजिद ब्रिगेड को एफटीओ घोषित कर दिया, एक ऐसा कदम जिसकी पाकिस्तान लंबे समय से मांग कर रहा था.
रोम स्थित सीएनकेवाई की रिपोर्ट ‘पाकिस्तान के सेना प्रमुख द्वारा वाशिंगटन में सीमाओं का परीक्षण करने पर भारत ने पीछे धकेला’ के लेखक थियोडोर व्हाइट ने लिखा, “भारत के लिए यह घटना याद दिलाती है कि वाशिंगटन के साथ गहरे होते रिश्ते भी अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सामरिक तालमेल की संभावना को खारिज नहीं करते, खासकर जब आतंकवाद-रोधी सहयोग इसकी मुख्य कड़ी हो. यह ऐसे समय में हुआ है जब भारत-अमेरिका के बीच ट्रैफिक को लेकर बहस शुरू है.”
रिपोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि वाशिंगटन द्वारा बीएलए को निशाना बनाए जाने का असर भारत-पाकिस्तान फ्रेम से परे है. बीएलए ने कई बार चीन के इंजीनियरों और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) से जुड़े बुनियादी ढांचे पर हमले किए हैं. इसलिए इस संगठन पर प्रहार बीजिंग के सुरक्षा हितों की भी पूर्ति करता है, जबकि अमेरिका-चीन संबंध रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता से भरे हुए हैं.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बलूच विद्रोह ईरान की पूर्वी सीमा तक फैला हुआ है, जहां सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में सुन्नी बलूच उग्रवादी तेहरान के लिए चुनौती बने हुए हैं. बीएलए को कमजोर करना अप्रत्यक्ष रूप से ईरान के उद्देश्यों को भी साधता है, जिससे इस जटिल क्षेत्रीय समीकरण में एक और परत जुड़ जाती है.
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डीएससी/
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