New Delhi, 2 अक्टूबर . दुनिया की महान प्राइमेटोलॉजिस्ट ‘जेन गुडॉल’ अब हमारे बीच नहीं रहीं, लेकिन उनकी जिंदगी की कहानियां आज भी उतनी ही जीवंत हैं जितनी अफ्रीका के जंगल! जेन ने 1 अक्टूबर 2025 को कैलिफोर्निया में अंतिम सांस ली. जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट ने इसकी जानकारी दी.
बचपन से ही डॉ गुडॉल अलग थीं. नवंबर 2024 में India आई थीं अपने मिस्टर ‘एच’ के साथ, वही जिसे दुनिया भर में साथ लेकर घूमती थीं. दरअसल, ये एक स्टफ्ड टॉय खिलौना (केला खाता बंदर) था. इसे उन्हें एक अमेरिकी नौ नौसैनिक ने 33 साल पहले गिफ्ट के तौर पर दिया था, जो देख नहीं सकता था. तब से उनके हर सफर का साथी रहा मिस्टर एच!
यहीं उन्होंने अपनी प्रेरणा, अपनी मां, को बताया था. वो मां जिसने उनको लड़की होने की वजह से कभी हार न मानने की सलाह दी थी.
अपने कई साक्षात्कारों में बचपन का वह किस्सा सुना चुकी थीं जिसमें जीव-जंतुओं के प्रति उनकी जिज्ञासा का पता चलता था. उन्होंने बताया था कि जब वह सिर्फ पांच साल की थीं, तो एक बार मुर्गी अंडा कैसे देती है, यह देखने के लिए पूरे चार घंटे मुर्गी के दड़बे में छिपकर बैठ गईं. घरवाले परेशान होकर ढूंढते रहे. मां ने Police बुला ली, लेकिन नन्हीं जेन तभी बाहर आईं जब उन्हें अपनी खोज पूरी तरह समझ में आ गई. यह मासूम घटना उनके भीतर जन्मी वैज्ञानिक जिज्ञासा का पहला प्रमाण थी.
जेन गुडॉल कभी कॉलेज नहीं गईं, लेकिन अपनी बुद्धि और ज्ञान की बदौलत पीएचडी जरूर की. बीस की उम्र में गुडॉल ने टाइपिस्ट और रिसेप्शनिस्ट की नौकरी की, पैसे बचाए, और अपना सपना पूरा करने अफ्रीका पहुंच गईं. उस दौर में अकेली लड़की का दूर देशों की यात्रा करना असामान्य था, लेकिन जेन की मां ने उन्हें रोका नहीं, बल्कि प्रोत्साहित किया. यही वजह है कि जब उन्होंने तंजानिया के गॉम्बे नेशनल पार्क में अपना पहला शोध अभियान शुरू किया, तो उनकी मां भी शुरुआती हफ्तों तक उनके साथ रहीं ताकि लोग उन्हें ‘अकेली लड़की’ समझकर हतोत्साहित न कर सकें.
फिर वह दिन आया जिसने विज्ञान की परिभाषा बदल दी. 1960 में जेन ने देखा कि चिंपैंजी लकड़ी की टहनी से दीमक निकालकर खाते हैं. इसका मतलब था कि इंसान औजार बनाने वाला “एकमात्र प्राणी” नहीं है. इस खोज ने वैज्ञानिक दुनिया में हलचल मचा दी. पहली बार दुनिया को दिखाया कि चिंपैंजी गुस्सा करते हैं, प्यार जताते हैं, और अपने बच्चों को दुलारते हैं—ठीक इंसानों की तरह.
लेकिन गुडॉल केवल वैज्ञानिक नहीं रहीं. उन्होंने जंगल और प्रकृति को अपनी आवाज दी. ‘जेन गुडॉल संस्थान’ और ‘रूट्स एंड शूट्स’ जैसे अभियानों के जरिये लाखों युवाओं को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ा. तभी तो उन्हें मैसेंजर ऑफ पीस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.
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केआर/
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