मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है और आशीर्वाद की प्राप्ति भी होती है। हालांकि जब भी हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं, तो सबसे पहले अपने सिर को कपड़े से ढकते हैं और उसके बाद ही भगवान के दर्शन करते हैं।
इसके अलावा कई लोग पूजा करने के बाद कुछ देर तक मंदिर की सीढ़ियों पर भी थोड़ी देर बैठते हैं। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों किया जाता है। दरअसल पूजा करने के बाद मंदिर में थोड़ी देर बैठने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और कई लोग इसका पालन आज भी कर रहे हैं।
हालांकि मंदिरों की सीढ़ियों पर क्यों बैठा जाता है? इसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी होती है। दरअसल ग्रंथों में मंदिरों की सीढ़ियों पर कुछ देर बैठने की बात कही गई है। इतना ही नहीं ग्रंथों में एक श्लोक भी लिखा गया है। जिसको सीढ़ियों पर बैठकर बोलने से हर कामान पूर्ण हो जाती है और दुखों का अंत हो जाता है।
जब भी मंदिर जाएं तो कुछ देर वहां की सीढ़ियों पर जरूर बैठें और नीचे बताए गए श्लोक को जरूर पढ़ें। ये श्लोक इस प्रकार है –
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्। देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।
इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है।
अनायासेन मरणम् का अर्थ
बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।
बिना देन्येन जीवनम् का अर्थ
परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। कभी भी हम बेबस ना हो । भगवान की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो जाए ।
देहांते तव सानिध्यम का अर्थ
जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख खड़े थे और उनके अपने दर्शन दिए थे ।
देहि में का अर्थ
हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना। ये प्रार्थना है।
कब करें इस श्लोक का जाप
मंदिर में भगवान के दर्शन करने के बाद सीढ़ियों पर बैठकर आप ये श्लोक पढ़ सकते हैं। वहीं जब भी मंदिर जाएं तो दर्शन करते समय आंखों को खुला ही रखें। दरअसल कुछ लोग आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। ऐसा करने से भगवान को अच्छे से नहीं देख पाते हैं। वहीं दर्शन करने के बाद जब बाहर आकर बैठें तब नेत्र बंद करके ये श्लोक बोल दें। ये श्लोक बोलते हुए आंख बंद करते हुए भगवान को याद करें और इसे पढ़ें।
मंदिर से जुड़े अन्य नियम
- मंदिर में प्रवेश करने से पहले अपने हाथों और पैरों को अच्छी तरह से साफ करें। गंदे हाथों से मूर्तियों को न छूएं।
- दर्शन करते समय इधर-उधर न देखें और पूरा मन पूजा में ही लगाएं।
- पूजा करने के बाद जो प्रसाद मिले उसे खुद ही खाएं। इस प्रसाद को किसी के साथ न बांटे।
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