शेयर मार्केट में जीएसटी के नए स्लैब के बाद तेज़ी तो आ रही है लेकिन साथ ही विदेशी संस्थागत निवेशक याने एफआईआई की बिकवाली जारी है. एफआईआई ने अगस्त 2025 में कैश मार्केट में 46,902.92 करोड़ रुपए की बिकवाली की और यह सिलसिला सितंबर माह में भी जारी है,जबकि एफआईआई कैश मार्केट में इस चालू माह में 5,666.90 करोड़ रुपए की बिकवाली कर चुके हैं.
कमजोर कॉर्पोरेट अर्निंग के बाद एफआईआई की बिकवाली की स्पीड बढ़ गई. भारतीय कंपनियों की आय में कमी आई है. वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में कंपनियों की मुख्य आय सालाना आधार पर 3.3% कम हुई और टैक्स से पहले मुनाफा 7.4% घट गया. अर्निंग्स की यह कमजोरी विशेष रूप से बैंकिंग और आईटी सेक्टर में देखी गई. इससे एफआईआई ने बैंकिंग और आईटी सेक्टर में बिकवाली बढ़ा दी. लेकिन आने वाले दिनों में रेट कट की संभावना बैंकिंग और आईटी दोनों सेक्टर में बाइंग वापस ला सकती है.
एनालिस्ट का मानना है कि 22 सितंबर से लागू वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में कटौती ने विदेशी संस्थागत निवेशों के भारत लौटने का रास्ता तैयार कर दिया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. एफआईआई का रुख कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है जैसे अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव, हाई वैल्यूएश और घरेलू स्तर पर कॉर्पोरेट अर्निंग की स्लो ग्रोथ एफआईआई के बाज़ार में खरीदारी करने के अहम पैमाने हैं.
साल 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा बदलाव जीएसटी 2.0 के रूप में आया है और इसमें उपभोग की सभी श्रेणियों में टैक्स में कुल मिलाकर कमी देखी गई. इन बदलावों के तहत जीएसटी स्लैब को चार से घटाकर दो कर दिया गया है. ज़रूरी वस्तुओं पर 5 प्रतिशत और अन्य वस्तुओं पर 18 प्रतिशत का नया टैक्स लगाया गया है.
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक 1.42 ट्रिलियन रुपये के शेयर बेचे हैं. हालांकि अब एफआईआई के लिए बायर्स बनने की राह तैयार हो रही है, जिसमें कई फैक्टर्स धीरे-धीरे उभर रहे हैं, जिससे अक्टूबर 2025 की तिमाही से एफआईआई की बिकवाली का सिलसिला रुक सकता है.
एफआईआई का रुख बदलने में जीएसटी दरों में कटौती, बजट 2025 में प्रत्यक्ष करों में कटौती, अच्छे मानसून और मुद्रास्फीति पर इसके प्रभाव के साथ ब्याज दरें प्रमुख सकारात्मक पहलू रह सकते हैं. इन फैक्टर्स से एफआईआई के लिए भारत की ओर रुख करने का माहौल तैयार हो गया है.
FII एक ओर जहां बैंकिंग और आईटी लार्जकैप स्टॉक में लगातार बिकवाली की है तो दूसरी ओर हाल के महीनों में एफआईआई ने मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है. इसके पीछे एफआईआई का लॉजिक है कि लार्जकैप की तुलना में मिडकैप स्टॉक में बेहतर रिटर्न की संभावना है. जीएसटी 2.0 से छोटे बिज़नेस को लाभ होने की उम्मीद है.
कमजोर कॉर्पोरेट अर्निंग के बाद एफआईआई की बिकवाली की स्पीड बढ़ गई. भारतीय कंपनियों की आय में कमी आई है. वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में कंपनियों की मुख्य आय सालाना आधार पर 3.3% कम हुई और टैक्स से पहले मुनाफा 7.4% घट गया. अर्निंग्स की यह कमजोरी विशेष रूप से बैंकिंग और आईटी सेक्टर में देखी गई. इससे एफआईआई ने बैंकिंग और आईटी सेक्टर में बिकवाली बढ़ा दी. लेकिन आने वाले दिनों में रेट कट की संभावना बैंकिंग और आईटी दोनों सेक्टर में बाइंग वापस ला सकती है.
एनालिस्ट का मानना है कि 22 सितंबर से लागू वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में कटौती ने विदेशी संस्थागत निवेशों के भारत लौटने का रास्ता तैयार कर दिया है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है. एफआईआई का रुख कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है जैसे अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव, हाई वैल्यूएश और घरेलू स्तर पर कॉर्पोरेट अर्निंग की स्लो ग्रोथ एफआईआई के बाज़ार में खरीदारी करने के अहम पैमाने हैं.
साल 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा बदलाव जीएसटी 2.0 के रूप में आया है और इसमें उपभोग की सभी श्रेणियों में टैक्स में कुल मिलाकर कमी देखी गई. इन बदलावों के तहत जीएसटी स्लैब को चार से घटाकर दो कर दिया गया है. ज़रूरी वस्तुओं पर 5 प्रतिशत और अन्य वस्तुओं पर 18 प्रतिशत का नया टैक्स लगाया गया है.
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक 1.42 ट्रिलियन रुपये के शेयर बेचे हैं. हालांकि अब एफआईआई के लिए बायर्स बनने की राह तैयार हो रही है, जिसमें कई फैक्टर्स धीरे-धीरे उभर रहे हैं, जिससे अक्टूबर 2025 की तिमाही से एफआईआई की बिकवाली का सिलसिला रुक सकता है.
एफआईआई का रुख बदलने में जीएसटी दरों में कटौती, बजट 2025 में प्रत्यक्ष करों में कटौती, अच्छे मानसून और मुद्रास्फीति पर इसके प्रभाव के साथ ब्याज दरें प्रमुख सकारात्मक पहलू रह सकते हैं. इन फैक्टर्स से एफआईआई के लिए भारत की ओर रुख करने का माहौल तैयार हो गया है.
FII एक ओर जहां बैंकिंग और आईटी लार्जकैप स्टॉक में लगातार बिकवाली की है तो दूसरी ओर हाल के महीनों में एफआईआई ने मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है. इसके पीछे एफआईआई का लॉजिक है कि लार्जकैप की तुलना में मिडकैप स्टॉक में बेहतर रिटर्न की संभावना है. जीएसटी 2.0 से छोटे बिज़नेस को लाभ होने की उम्मीद है.
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