बंगाल में शरद ठाकुर नाम के एक ब्राह्मण भक्त थे। लोग उनका बहुत सम्मान करते थे, उन पर सभी भरोसा करते थे और उन्हें दान देते थे। लोगों के दान की वजह से शरद ठाकुर के पास काफी धन-संपत्ति हो गई थी।
शरद ठाकुर का एक बेटा था, उसका नाम था नवीन चंद्र। नवीन शुरू में तो बहुत सीधा-साधा था, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था तो उसकी धन-संपत्ति देखकर कुछ बिगड़े लड़के उसके दोस्त बन गए। गलत लोगों की संगत में नवीन चंद्र का आचरण गिरने लगा। वह जुआं खेलने लगा, शराब पीने लगा और व्यभिचार करने लगा।
नवीन के माता-पिता भक्त और सीधे-साधे थे, लेकिन उनका बेटा गलत रास्ते पर चलने लगा था। एक दिन शरद ठाकुर के गांव में एक महात्मा आए और वहां तपस्या करने के लिए रुक गए थे। महात्मा जी केवल एक घंटा बोलते और बाकी समय मौन रखते थे। लोग कहते थे कि उनके पास जाओ तो बहुत अच्छा लगता है। शरद जी भी महात्मा जी के पास पहुंच गए।
शरद ठाकुर ने रोते-रोते महात्मा जी को अपने बेटे की गलत आदतों के बारे में बताया। महात्मा जी ने कहा, ‘अगर वो गलत संगत में बिगड़ा है तो अच्छी संगत में सुधर भी सकता है। ये पूरा मामला संगत का है। तुम किसी तरह उसे प्यार से कुछ समय के लिए मेरे पास लेकर आया करो। वह मेरे पास कुछ देर रोज बैठे।’
शरद ठाकुर ने अपने बेटे नवीन को महात्मा जी के पास भेजना शुरू कर दिया। महात्मा जी ने नवीन से कहा, ‘मैं तुम्हें ज्ञान की कोई बात नहीं कहूंगा, न ही तुम्हें कोई भजन करने के लिए कहूंगा। लेकिन तुम्हारे माता-पिता की इच्छा है तो तुम यहां कुछ देर बैठ सकते हो।’
नवीन ने सोचा कि रोज मित्रों के साथ बैठता हूं तो कुछ देर यहां बैठा रहूंगा। वह रोज महात्मा जी के पास जाने लगा। करीब एक महीने के बाद से ही नवीन में बदलाव आने लगा। धीरे-धीरे उसकी बुरी संगत छूट गई।
एक दिन नवीन के पिता शरद ठाकुर ने उससे पूछा, ‘तेरे स्वभाव में काफी बदलाव नजर आ रहा है।’
नवीन ने कहा, ‘मैं जब महात्मा जी के पास जाता हूं तो उनके आसपास का वातावरण ऐसा रहता है कि मेरे विचार बदल जाते हैं। वो मुझसे कुछ कहते नहीं हैं, लेकिन जो बातें दूसरों से कहते हैं, वह सुनकर मैं सोचता हूं कि मैं भी वैसा ही करूं।’
धीरे-धीरे नवीन में ऐसा बदलाव आ गया कि वे भक्त शिरोमणि नवीन चंद्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
सीख
अगर कुसंग से कोई बिगड़ सकता है तो अच्छी संगत से व्यक्ति सुधर भी सकता है। इसलिए अगर हमें कोई बुरी लत लग जाए तो किसी इंसान के साथ रहना चाहिए, जिसकी सोच सकारात्मक हो, जिसका आचरण अच्छा हो। अच्छी संगत से हमें बुरी आदतों से मुक्ति मिल सकती है।
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