गौतम बुद्ध एक गांव में उपदेश दे रहे थे. उन्होंने कहा कि सबको धरती की तरह सहनशील और क्षमाशील होना चाहिए. जो व्यक्ति क्रोध करता है, क्रोध की अग्नि में वह दूसरों के साथ-साथ खुद को भी जलाता है. सब लोग शांति से बुद्ध की बातें सुन रहे थे. लेकिन वहां एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा था, जो बहुत गुस्सा करता था. उसे यह सारी बातें बकवास लग रही थी. कुछ देर वह सुनता रहा और अचानक से गुस्सा होकर कहने लगा- तुम पाखंडी हो. तुम बड़ी-बड़ी बातें करते हो. लोगों को भ्रमित करते हो. तुम्हारी बातों का आज के समय में कोई मोल नहीं है.
गौतम बुद्ध उस व्यक्ति की कड़वी बातों को सुनकर भी चुप रहे. उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. यह देखकर व्यक्ति और भी गुस्से में आ गया और बुद्ध के मुंह पर थूक कर वहां से चला गया. जब अगले दिन उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हुआ तो उसे अपने बुरे व्यवहार की वजह से पछतावा हुआ. वह गौतम बुद्ध को ढूंढने उसी जगह पर पहुंचा. लेकिन वहां से बुद्ध जा चुके थे.
व्यक्ति बुद्ध के बारे में लोगों से पूछने लगा और ढूंढते-ढूंढते वहां पहुंच गया, जहां बुद्ध प्रवचन दे रहे थे. बुद्ध को देखते ही व्यक्ति उनके चरणों में गिर पड़ा और क्षमा मांगने लगा. बुद्ध ने पूछा- तुम कौन हो भाई. तुम्हें क्या हुआ है. तुम मुझसे क्षमा क्यों मांग रहे हो. उस व्यक्ति ने कहा- क्या आप भूल गए, मैं वही हूं जिसने कल आपके मुंह पर थूका था. मैं अपनी गलती के लिए बहुत शर्मिंदा हूं और मैं आपसे क्षमा मांगना चाहता हूं.
भगवान बुद्ध ने कहा- मैं बीते हुए कल को वहीं छोड़ कर आया हूं. तुम अभी तक उसी बात पर अटके हुए हो. तुम्हें अपनी गलती का पता चल गया और तुमने पश्चाताप कर लिया. अब तुम्हारा मन निर्मल हो चुका है. अब तुम आज में प्रवेश करो. पुरानी और बुरी बातें भूल जाओ. इससे भविष्य और वर्तमान दोनों बिगड़ जाते हैं. भगवान बुद्ध ने उसे माफ कर दिया, जिससे उसका सारा बोझ उतर गया. उसने भगवान बुद्ध के चरणों में पड़कर क्रोध, त्याग व क्षमाशीलता का संकल्प लिया और व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आ गया और उसके जीवन में सब कुछ ठीक हो गया.
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