पश्चिमी अफ़्रीकी देश नीजेर में झारखंड के पांच मज़दूरों का अपहरण हुआ है.
25 अप्रैल को नीजेर के तिलाबेरी टाउन के पास निर्माण कार्य के दौरान हथियारबंद बाइक सवारों ने हमला किया था.
अचानक हुए इस हमले में नीजेर के कुछ सुरक्षाकर्मी भी मारे गए थे.
हमले के बाद पांच भारतीय मज़दूरों सहित कुल छह लोगों को अग़वा कर लिया गया.
झारखंड सरकार का कहना है कि भारतीय दूतावास नीजेर सरकार के संपर्क में है और मज़दूरों की रिहाई की कोशिश की जा रही है लेकिन अब तक कोई ठोस जानकारी सामने नहीं आई है.
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ये सभी मज़दूर झारखंड के गिरिडीह ज़िले से नीजेर काम करने गए थे. इनके गांव में बेचैनी है और मज़दूरों के परिवार किसी अच्छी ख़बर का इंतज़ार कर रहे हैं.
परिजनों का कहना है कि अपहरण के तुरंत बाद उन्हें सूचित नहीं किया गया था. परिवार वालों को सबसे पहले इसकी ख़बर अपहरण से बचे साथियों के ज़रिए पता चली.
सुरक्षित लौटने के बाद कुछ मज़दूरों ने घरवालों को फोन पर बताया कि उनके पांच साथियों को अग़वा कर लिया गया है.
अपहरण के संबंध में झारखंड सरकार के श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण विभाग के सचिव जितेंद्र सिंह ने बीबीसी से बात की.
उन्होंने कहा, "जिन श्रमिकों को बंधक बनाया गया है, उनको रिहा करने के लिए नीजेर गवर्नमेंट को ही कोशिश करनी होगी, जो वे कर भी रहे हैं."
जितेंद्र सिंह ने बताया कि अब तक भारतीय दूतावास से कोई नई जानकारी नहीं मिली है.
25 अप्रैल को हुआ क्या था?घटना 25 अप्रैल को तब हुई जब कल्पतरु कंपनी के बारह भारतीय कर्मचारियों सहित कुल 38 मज़दूर, नीजेर सुरक्षा बलों की मौजूदगी में ट्रांसमिशन लाइन के लिए टॉवर लगाने का काम कर रहे थे.
घटना के वक्त मौजूद रहे मोजीलाल महतो उन मज़दूरों में हैं जो किसी तरह जान बचाकर लौटे.
28 वर्षीय मोजीलाल एक गहरे नाले में उतरकर छिपे, वहीं से उन्होंने पूरा मंजर देखा और अब बीबीसी से अपनी आपबीती साझा की.
वे बताते हैं कि रोज़ की तरह दोपहर का खाना खाने के बाद सभी मज़दूर साइट पर लौटे थे, जहां बड़ी संख्या में नीजेर के सुरक्षाकर्मी तैनात थे.
वे आगे कहते हैं कि अचानक करीब पचास बाइक सवार हमलावरों ने सुरक्षाबलों पर फायरिंग शुरू कर दी, जिससे अफरातफरी मच गई.
मोजीलाल महतो ने बताया, "सुरक्षाकर्मियों की आवाज़ पर हम सभी नज़दीक खड़ी कंपनी की बस में बैठ गए. बस कोई बीस मीटर आगे बढ़ी और उसके बाद रेतीली मिट्टी में फंस गई. खौफ़ के कारण हम सभी जान बचाने के लिए बस से कूद कर भागने लगे."
भागते वक्त कुछ मज़दूर आगे निकल गए. इनमें फलजीत महतो, राजू महतो, चंद्रिका महतो, संजय महतो और उत्तम महतो के अलावा एक स्थानीय मज़दूर भी था.

वो बताते हैं, "उन पांचों के नज़दीक पहुंचने वाले हमलावरों ने सबसे पहले फलजीत महतो को पकड़ा, उसके बाद बाकी चार को. तब तक हम बाकी मज़दूरों ने पीछे की तरफ मौजूद एक नाले में छिप कर अपनी जान बचाई."
वो आगे कहते हैं, "वहीं से छिपकर हमने ये दर्दनाक मंज़र देखा."
करीब एक घंटे बाद सुरक्षाबलों की नई टुकड़ी घटनास्थल पर पहुंची और फायरिंग बंद हुई.
वो बताते हैं, "उस समय वहां रात के ग्यारह बज रहे थे. हमारे मोबाइल पर बहुत सी मिस कॉल थीं. लेकिन उस रात हम अपने परिवार वालों को इस बारे में बताने की हिम्मत नहीं जुटा सके."
26 अप्रैल को भी पूरे दिन वो डर और तनाव के कारण परिवार की कॉल नहीं उठा सके.
वो बताते हैं, "कंपनी के अधिकारी हमारी हिम्मत बढ़ाते रहे लेकिन उस दिन शाम तक पांच साथियों की कोई सूचना नहीं मिली. तब मैंने अपनी पत्नी की भाभी सोनी देवी की कॉल रिसीव की और उन्हें बताया कि संजय महतो समेत गांव के चार साथियों का अपहरण हो गया है."
अपहरण किए गए सभी पांच मज़दूर झारखंड के गिरिडीह ज़िले के दोंदलो गांव के रहने वाले हैं.
संजय महतो की पत्नी सोनी देवी बताती हैं कि 25 अप्रैल को दोपहर के खाने के समय उनकी आख़िरी बार पति से बात हुई थी.
उनका कहना है, "मेरी तरह दूसरे परिवार भी बात करने में असमर्थ थे. अंत में मैंने अपने नंदोई मोजीलाल महतो को कॉल किया. तब पता चला कि मेरे पति का अपहरण हो गया है."
परिवार का कहना है कि संजय जनवरी 2023 में नीजेर गए थे और दो महीने बाद वापस लौटने वाले थे.
सोनी देवी ने बताया, "कल एसडीएम साहब घर आए थे. वह तसल्ली देते हुए कह गए कि चिंता मत कीजिए, आपके पति जल्द वापस आ जाएंगे. लेकिन वह कब आएंगे, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है."
राजू महतो की पत्नी लक्ष्मी देवी की 25 अप्रैल को सुबह 11 बजे पति से आख़िरी बार बात हुई थी.
वो कहती हैं, "उन्होंने मुझे बताया था कि दो महीने का काम बचा है, फिर घर आ आऊंगा. अब अचानक कैसे क्या हो गया, समझ में नहीं आ रहा है. सरकार ही कुछ कर सकती है. हम तो असहाय हैं, हमारा परिवार सिर्फ़ प्रार्थना ही कर सकता है."

फलजीत महतो की पत्नी रूपा देवी कहती हैं कि उन्हें पति के अपहरण की जानकारी भी बैजनाथ महतो से ही मिली.
वो कहती हैं, ''अंतिम बार उनकी कॉल 25 तारीख की दोपहर में आई थी. काम की वजह से मैं ज़्यादा बात नहीं कर सकी. अब उनसे बात होगी भी या नहीं पता नहीं. भगवान ही जानता है कि मेरे पति किस स्थिति में हैं. अब मेरे दोनों बच्चों की परवरिश कैसे होगी? रात दिन फोन लगाती हूं लेकिन मोबाइल बंद है."
चंद्रिका महतो की पत्नी बुधनी देवी कहती हैं कि आख़िरी बार 25 अप्रैल को बातचीत हुई थी.
बुधनी देवी ने बताया, "उस बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा देनी है ताकि मेरी तरह मज़दूरी के लिए दर-दर न भटकें. 25 अप्रैल के बाद आज तक उनकी आवाज़ सुनने को नसीब नहीं हुई. हर कोई तसल्ली देकर चला जाता है. लेकिन क्या तसल्ली काफ़ी है इस परिवार के लिए."
उत्तम महतो की पत्नी जुगनी देवी बताती हैं कि उनके पति ने 25 अप्रैल को रोज़ की तरह लंच टाइम कॉल की थी.
वो अपनी हालत के बारे में कहती हैं, "मेरी सास का देहांत हो गया है. बीमार ससुर के इलाज में हर महीने दो हज़ार खर्च होते हैं. मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं. ऐसी हालत में पति के बिना ये परिवार कैसे चलेगा? इस लिए जिस तरह कंपनी उनको नीजेर लेकर गई है, उसी तरह उनको वापस ले आए और सरकार यहीं रोज़गार उपलब्ध कराए."
घटना की जानकारी मिलने के बाद झारखंड सरकार ने राज्य प्रवासी नियंत्रण कक्ष को सक्रिय किया है.
27 अप्रैल को पूर्व विधायक विनोद सिंह ने श्रम, नियोजन और प्रशिक्षण विभाग को औपचारिक रूप से पत्र भेजकर दखल की मांग की थी. गिरिडीह के ज़िला उपायुक्त नमन प्रियेश लकड़ा ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि मामला केंद्र सरकार, भारतीय दूतावास और नीजेर प्रशासन के समक्ष रखा गया है.
उपायुक्त ने कहा, "हम लोग मैपिंग करवा रहे हैं कि पांचों युवकों की रिहाई के बाद उनके परिवार को किस योजना से जोड़ा जा सकता है."
ऐसी कौन सी योजनाएं हैं जिनका लाभ मिल सकता है?
उपायुक्त ने कहा कि इन परिवारों को आवास के लिए आंबेडकर आवास योजना की सुविधा दी जाएगी. साथ ही नियमित आय के लिए मनरेगा का लाभ भी दिया जायेगा.
उन्होंने कहा कि इसके अलावा इन परिवारों को मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना से सभी को जोड़ा जाएगा. जिसके तहत पांच से दस हज़ार रुपए की सहायता प्रति सदस्य दी जाती है.
रिहाई को लेकर क्या कोई ताज़ा जानकारी है, इस सवाल पर उपायुक्त ने कहा, "अभी तक कोई अपडेट नहीं है. लेकिन भारतीय दूतावास और कंपनी के मैनेजर से बातचीत जारी है."
'हमलावर कौन थे, कहना मुश्किल है'
नीजेर में तैनात कल्पतरु कंपनी के मैनेजर जगन मोहन ने बीबीसी से बातचीत में पुष्टि की कि घटना के वक्त वे भी मौके पर मौजूद थे. उन्होंने बताया कि कंपनी सुरक्षा के लिए स्थानीय सुरक्षाबलों की मदद ले रही थी, और हमला अचानक हुआ.
वो कहते हैं, "घटना के समय मैं भी वहीं मौजूद था. हमारी हिफ़ाज़त के लिए सुरक्षाकर्मी मौजूद थे. उस समय गोलियां फ्रंट लाइन में मौजूद सुरक्षाकर्मियों पर चल रही थीं."
क्या हमलावरों का निशाना मज़दूर थे या सुरक्षाकर्मी?
उनका कहना था, "ये कह पाना मुश्किल है क्योंकि हम ट्रांसमिशन लाइन के इस प्रोजेक्ट पर तीन साल से काम कर रहे हैं. हमने 90 फ़ीसदी सिविल वर्क पूरा कर लिया है. लेकिन इस दौरान कभी कोई घटना नहीं घटी. अग़वा करने वाले लोग कौन हैं और उन्होंने ऐसा क्यों किया, ये कहना मुश्किल है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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