(इस बातचीत के कुछ विवरण आपको विचलित कर सकते हैं)
पिछले सप्ताह ही ऐशान्या की आंखों के सामने उनके पति की हत्या कर दी गई. वो आज भी उस वाकये को याद कर रो पड़ती हैं.
घर की भीड़ में अपनी सुध-बुध खो चुकी वो गुमसुम सी बैठी थीं. ऐशान्या पहलगाम हमले में मारे गए 31 वर्षीय शुभम द्विवेदी की पत्नी हैं. पूरे परिवार की स्थिति ऐशान्या जैसी ही है. इस घर ने इकलौते बेटे को खोया है.
बीबीसी से बात करते हुए 29 साल की ऐशान्या द्विवेदी ने सरकार से नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, "हमारे देश ने, हमारी सरकार ने हमें उस जगह (पहलगाम) पर अनाथ छोड़ दिया था. हम जिनके भरोसे वहां घूम रहे थे, वो उस वक़्त वहां मौजूद ही नहीं थे."
जिस वक़्त घटना हुई थी उस वक़्त वहां की सुरक्षा व्यवस्था क्या थी? इस सवाल के जवाब में ऐशान्या ने कहा, "कोई सिक्योरिटी गार्ड नहीं था, कोई आर्मी का सिपाही नहीं था. घर में माँ-बाप सुरक्षा कर सकते हैं लेकिन घर के बाहर हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है."
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अलमारी में रखी शुभम की तस्वीर की तरफ निहारते हुए ऐशान्या का गला रुंध आया. वो उस तस्वीर को गौर से देख रही थीं.
"मैंने अपने प्यार को, अपने पति को, अपनी दुनिया को अपनी आँखों के सामने ख़त्म होते देखा है. भगवान ऐसा दिन कभी किसी को न दिखाए." यह कहते हुए ऐशान्या के आंसू बहने लगे जो देर तक थमे नहीं. वो बहुत देर खमोश रहीं.
ऐशान्या ने सरकार से अपील करते हुए कहा, "इस देश की ग़लती की वजह से, सरकार की फेलियर (नाकामी) की वजह से हमारा पति शहीद हुआ है इसलिए शुभम को शहीद का दर्जा मिलना ही चाहिए."
"दूसरी ज़रूरी बात, क्योंकि शुभम को पहली गोली लगी थी जिस वजह से बहुत लोगों को वहां से भागने का मौका मिल गया. जो लोग आज वहां से सुरक्षित अपने घर पहुंच पाए हैं जो ये बता पा रहे हैं कि हम बच गये वो सिर्फ शुभम की वजह से ही संभव हो पाया है."
ऐशान्या समेत पूरे परिवार ने शुभम को पहली गोली लगने का दावा किया है.
"अगर हिन्दुस्तान में कोई हिन्दू कहने पर मारा जाता है तो मैं उसे शहीद मानती हूँ. सरकार को भी मानना चाहिए. और अगर सरकार की नाकामी की वजह से भी किसी की हत्या होती है तो भी उसे शहीद का दर्जा मिलना चाहिए."
ऐशान्या ने देश के सभी नागरिकों से अपील की है कि शुभम की वजह से बहुत लोगों की जान बची है इसलिए सभी लोग शुभम को शहीद का दर्जा दिलाने की इस मांग में हमारा साथ दें. अगर शुभम को शहीद का दर्जा नहीं मिला तो कुछ दिन में उसे भुला दिया जाएगा.
"शुभम भूलने की चीज नहीं है. उसे किसी को नहीं भूलना चाहिए. मुझे नहीं पता सरकार उसे याद रखने के लिए क्या करेगी पर इतना ज़रूर करे जिससे मैं शहीद की पत्नी कहलाऊं. मैं इस पहचान के साथ ताउम्र उसके बिना जीवन बिता लूंगी."
ऐशान्या के इन शब्दों में शुभम के बिना पूरा जीवन गुजारने की तकलीफ थी.
पहलगाम की बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए हमले में 26 लोग मारे गए थे. जिसमें कानपुर के शुभम द्विवेदी भी शामिल थे.

जम्मू-कश्मीर में चरमपंथी हमले में मारे गए शुभम के पिता संजय कुमार द्विवेदी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "हमारे बेटे को घूमने का बहुत शौक था. उसने दुनिया के कई देशों की यात्रा की थी. वो हर जगह से सुरक्षित वापस आया. ये तो अपना देश था. अपने ही देश में उसकी निर्मम हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि वो एक हिन्दू था."
"शीर्ष पर बैठे लोगों को यह जरूर सोचना चाहिए कि अपने हिन्दुस्तान में हिन्दू होने की वजह से किसी की भी हत्या हो सकती है. मेरा बेटा तो चला गया लेकिन किसी और का बेटा ऐसे कभी न जाए, इसलिए सरकार को आतंकवादियों को जड़ से खत्म करना होगा."
इकलौते बेटे की मौत उनके जीवन के शेष दिनों को गहरा घाव देकर चली गई है. शुभम की माँ एक दूसरे कमरे में एकांत में बैठी थीं. वो किसी से भी बात करने की स्थिति में नहीं थीं.
बेटे की हत्या के बाद से संजय द्विवेदी की तबियत खराब है. वो ज्यादा किसी से बात नहीं करते हैं. शुभम ने तीन-चार साल पहले ही पिता के सीमेंट के पूरे बिज़नेस को जिम्मेदारी से संभाल रखा था. शुभम ने एमबीए किया था.
शुभम की दो महीने पहले 12 फरवरी को बड़ी धूमधाम से ऐशान्या के साथ ओरछा में डेस्टिनेशन वेंडिंग हुई थी. ऐशान्या ने सोशल मीडिया हैंडल पर शादी की सभी रस्मों के खूब सारे फोटो और वीडियो साझा किये हैं. जिसमें परिवार के लोग बहुत खुश हैं.
ऐशान्या की शुभम से जान पहचान मेट्रोमोनियल साइड पर हुई थी. एक अक्तूबर 2024 को पहली बार वो एक दूसरे से मिले थे.
ऐशान्या कहती हैं, "शुभम ने छह सात महीनों में मुझे बहुत प्यार दिया है. उन यादों के सहारे हम पूरा जीवन इसी घर में बिता देंगे. मुझे इस घर ने हमेशा बेटी माना है. ससुराल और मायके में कोई फर्क ही समझ नहीं आया."
'गुस्सा सरकार से था, मारे गए बेकसूर लोग'शुभम को मैगी खाना और घूमना बहुत पसंद था. पहली बार वो अपने पूरे परिवार के साथ 17 अप्रैल को कश्मीर घूमने गये थे. 23 अप्रैल को उनकी वापसी थी. वापसी के एक दिन पहले 22 अप्रैल को वो पहलगाम घूमने गये थे. जिस दिन शुभम की हत्या हुई थी उस दिन कश्मीर में इस परिवार का आख़िरी दिन था.
ऐशान्या यात्रा की तैयारी के दिनों को याद करते हुए कहती हैं, "शादी के बाद से शुभम ने साल में दो फैमिली ट्रिप के लिए प्लान किया था. ये हमारी पहली फैमिली ट्रिप थी. इस बार कहाँ जाना है सबने वोट किया और फिर हमने कश्मीर जाने को चुना. हमें नहीं पता था हमारे लिए कश्मीर इतना बुरा होगा."
"सरकार तो कह रही थी अब कश्मीर सुरक्षित है. वहां 370 हट चुका है. हम लोग तो वहां बिना किसी चिंता के घूमने गये थे हमें नहीं पता था कि वहां हमारी दुनिया ही खत्म हो जाएगी."
शुभम इकलौते बेटे थे. उनकी एक छोटी बहन आरती हैं, जिनकी शादी शुभम की शादी से दो साल पहले हो गई थी. इस यात्रा में शुभम के परिवार के कुल 11 लोग गए थे, जिनमें शुभम की पत्नी, माता-पिता, बहन-बहनोई, ऐशान्या के माता-पिता बहन समेत उनकी बहन के सास-ससुर शामिल थे.
जिस वक़्त ये घटना हुई थी उस वक़्त शुभम के साथ उनकी पत्नी के अलावा ऐशान्या की छोटी बहन शाम्भवी और उनके माता-पिता समेत कुल 5 लोग मौजूद थे. परिवार के बाकी छह लोग बैसरन घाटी के आधे रास्ते से ही वापस लौट आये थे. क्योंकि शुभम की बहन आरती को घोड़े पर बैठकर बहुत घबराहट हो रही थी उन्होंने ऊपर जाने से मना किया तो परिवार के 5 अन्य सदस्य भी नहीं गए.
ऐशान्या ने बताया, "जब हम एयरपोर्ट पहुंचे तो हमें ऐसे बहुत परिवार मिले, जिन्होंने आतंकवादियों से कहा था कि हमें भी गोली मार दो जिस तरह से हमारे पति को मारा है. लेकिन उन लोगों ने कहा कि अपनी सरकार को जाकर बताना तुम्हारे पति के साथ हमने क्या किया है."
"आतंकवादियों के ऐसा कहने से लग रहा था कि वो सरकार से गुस्सा थे लेकिन मारे गए बेकसूर लोग."
क्या आपसे ही उन्होंने कुछ कहा था? इस सवाल के जवाब में ऐशान्या ने बताया, "नहीं. मुझे कुछ कहने-सुनने का समय ही नहीं मिला. हमें ऊपर पहुंचे हुए केवल 10 मिनट ही हुए थे. मैगी और कॉफ़ी ऑडर की थी. घड़ी में उस वक़्त 02 बजकर 25 मिनट हुआ था. एक हवाई फायरिंग हुई जिसे हमने सुना भी. कॉफ़ी वाला जैसे ही कॉफ़ी रखकर गया कुछ सेकेण्ड के बाद एक व्यक्ति हमारे नजदीक आया जिसने शुभम से पूछा हिन्दू हो या मुसलमान".
"हमें लगा हमारे साथ कोई प्रैंक कर रहा है. हमने हंसते हुए पूछा क्या हुआ. उसने फिर पूछा हिन्दू हो या मुस्लिम. मुस्लिम हो तो कलमा पढ़ो. हमें अभी भी लग रहा था कि कोई प्रैंक ही कर रहा है. जैसे ही हमारे और शुभम के मुंह से हिन्दू निकला. हमारा वाक्य भी पूरा नहीं हुआ उसने शुभम के सिर के बाएं हिस्से पर गोली चला दी."
यह कहते हुए ऐशान्या की आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे और उनके शब्द लड़खड़ा रहे थे, "गोली लगते ही वो गिर गया. मैंने उसे उठाया. उसका चेहरा गायब हो चुका था. केवल मांस के चीथड़े और खून ही था. फिर क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं."
जिस वक़्त शुभम को गोली लगी उस वक़्त उनके ससुर जी टॉयलेट गए थे. उनकी सास कुछ दूरी पर टहल रही थीं. ऐशान्या की बहन कुछ दूर पर इन दोनों की फोटो खींच रही थीं.
ऐशान्या की छोटी बहन शाम्भवी ने बताया, "मैं दीदी से कुछ ही मीटर की दूरी पर थी. हमें ऊपर आये अभी केवल 10 मिनट हुए थे. एक हवाई फायरिंग हमने भी सुनी थी. इसके बाद मैंने एक आदमी को जीजा (शुभम) के पास आते हुए देखा. वो डार्क कलर के काले या स्लेटी कलर के कपड़े पहने था. उसके हाथ में गन थी. चेहरे पर कोई मास्क नहीं था."
"उसे देखकर मुझे लगा कि ये कोई सुरक्षा का जवान है पर वो आर्मी की ड्रेस में नहीं था. मुझे ये भी लगा कि ये कोई गेम खिलाने वाला व्यक्ति भी हो सकता है. सिर्फ पांच सेकेण्ड का खेल था. सबकुछ मेरी आँखों के सामने हुआ."
ये बताते हुए वो काफी तकलीफ में थी और रो पडीं.
उन्होंने बताया, "मुझे अभी भी लग रहा था कि ये सब एक शूटिंग है. अभी जीजा उठ जायेंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. उनके पास एक ग्रेट माइंड था, जिसे गोली से बाहर कर दिया गया था."
'सरकार हर भारतवासी को दे सुरक्षा का भरोसा'
इतना सब देखते ही शाम्भवी बहुत तेजी से दीदी की तरफ भागी. तबतक गोलियों की आवाज़ बढ़ने लगी थी.
"मैंने दीदी को जबरदस्ती खींचकर गेट के बाहर किया. माँ और पापा को खोजा. पापा अगर वाशरूम न जाते तो उन्हें भी कुछ हो सकता था. सबको खींचकर बाहर लाये कि जल्दी भागो नहीं तो वो सबको मार देंगे."
शाम्भवी ने यह भी बताया कि नीचे आने का रास्ता बहुत पथरीला था. घोड़े से ऊपर आते हुए डर लग रहा था. पैदल वापसी संभव नहीं थी पर किसी ने भी हमारी मदद नहीं की.
"हम घोड़े वालों से बहुत गिड़गिड़ाये कि मेरे मम्मी-पापा नीचे पैदल नहीं जा पाएंगे. दीदी की हालत बहुत खराब थी पर जब किसी ने मदद नहीं की तो हम गिरते-पड़ते बहुत मुश्किल से नीचे उतर कर आ पाए. ऊपर गोलियां चलने की आवाज़ 20-25 मिनट तक आई और फिर सब खत्म हो गया."
"जीजा को गोली लगते ही आसपास जो 100-150 लोग थे वो इधर-उधर भागने लगे थे. अगर किसी और को पहली गोली लगती तो हो सकता है कि हम लोग भी भाग पाते और बच जाते."
शाम्भवी को इस बात पर ज्यादा गुस्सा है कि उनके जीजा को सिर्फ धर्म के नाम पर मारा गया.
शाम्भवी घटना के पहले के कश्मीर यात्रा का अनुभव साझा करती हैं, "हमने कश्मीर में बहुत मस्ती की थी. मेरी दीदी की शादी के दो महीने ही हुए थे पर उन्होंने इन दो महीनों में मेरी बहन को बहुत घुमाया था. कश्मीर ट्रिप में ही दूसरी ट्रिप पेरिस जाने की प्लानिंग कर रहे थे. उन्होंने दीदी से कहा था कि शादी के छठे महीने की एनिवर्सरी पेरिस में मनाएंगे."
ऐशान्या ने बीकॉम तक पढ़ाई की है. वो बहुत अच्छा डांस करती हैं. वो कई स्टेज परफोर्मेंस कर चुकी हैं. कुछ दिनों में डांस क्लासेज़ स्टार्ट करने वाली थीं.
कानपुर जिला मुख्यालय से क़रीब 20 किलोमीटर दूर शुभम का पैतृक गाँव रूमा है. इस वक़्त उनके दरवाजे के अन्दर बहुत सारे लोग बैठे मिल जायेंगे. गेट में घुसते ही सफेद रंग की तख्त पर एक चादर बिछी है जिसके ऊपर शुभम की माला डालकर फोटो रखी हुई है.
शुभम के चचेरे भाई सौरभ (28 वर्ष) ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "सरकार को आतंकवाद की जड़ें खत्म करके भारत के हर नागरिक को आश्वस्त करना होगा कि आप कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जहाँ भी रहें वहां सुरक्षित हैं."
"भाई के अंतिम संस्कार में मुख्यमंत्री जी आये थे. उन्होंने भाभी से कहा आप मेरी बेटी जैसी हो. जो भी आप कहेंगी हम उसे पूरा करेंगे."
जिस दिन शुभम का अंतिम संस्कार हुआ उस दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस परिवार से मिलने गये थे. उन्होंने परिवार को आश्वासन दिया है कि वो "आतंकवादियों" के खिलाफ़ सख्त कदम उठाएंगे.
शुभम की बहन आरती ने कहा, "दो चार दिन खबरें चलेंगी सब भूल जाएंगे मेरे भाई को. पुलवामा में 2019 के हमले की अब कितनी बात होती है. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मेरे भाई के लिए कुछ ऐसा जरूर किया जाए ताकि कम से कम हमारा शहर तो उन्हें याद रख सके."
शुभम की याद में सुबह शाम रोज इनके घर में पूजा होती है जहां पूरा परिवार एक साथ एक डेढ़ घंटे बैठकर उनकी तस्वीर पर फूल चढ़ाकर श्रद्धांजलि देता है और कथा सुनता है.
ऐशान्या की बहन ने कहा, "अगर उन्हें माथे के आलावा कहीं और गोली लगी होती तो शायद हम उन्हें बचा लेते. हमने उन्हें तब तक हिलाया जबतक हमें यह नहीं लगा कि अब वो जीवित नहीं हैं. बाकी लोगों के परिवार को अपने शहीद हुए लोगों के चेहरे तो देखने को मिल गए. पर हमारे जीजा का तो चेहरा ही नहीं बचा."
संजय द्विवेदी ने बताया, "आतंकवादियों ने ज्यादातर नौजवानों को मारा है. उन्होंने देश के भविष्य की निर्मम हत्या की है. सरकार को किसी कीमत पर चुप नहीं बैठना चाहिए."
क्या आपको लगता है कि आपके पति की हत्या सिर्फ हिन्दू होने की वजह से हुई है? इस सवाल के जवाब में ऐशान्या ने कहा, "आपको लगता है आतंकवाद की कोई जाति है, कोई धर्म है. वो सिर्फ आतंकवादी हैं वो इंसान ही नहीं हैं. वो हैवान हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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