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चित्तौड़गढ़ के विजय स्तम्भ के पीछे छिपा है प्रकृति और इतिहास का अद्भुत संगम, वीडियो में ऐसा खूबसूरत नजारा देख हो जाएंगे मंत्रमुग्ध

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राजस्थान का चित्तौड़गढ़ केवल एक किला नहीं, बल्कि वीरता, बलिदान और गौरवशाली इतिहास की जीवंत प्रतीक है। जब भी चित्तौड़गढ़ का नाम लिया जाता है, सबसे पहले आंखों के सामने आता है – विजय स्तम्भ, जो मेवाड़ की विजय गाथा का प्रतीक है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि विजय स्तम्भ के आस-पास एक ऐसा खूबसूरत पर्यटन स्थल भी स्थित है जो इतिहास और प्रकृति दोनों का अद्भुत संगम है।अगर आप चित्तौड़गढ़ घूमने जाएं और सिर्फ किला या विजय स्तम्भ देखकर लौट आएं, तो आप बहुत कुछ मिस कर सकते हैं। आज हम बात कर रहे हैं विजय स्तम्भ के पास स्थित उस छिपे हुए खजाने की, जिसे देखे बिना चित्तौड़गढ़ यात्रा अधूरी है।


कहां स्थित है ये स्थल?
विजय स्तम्भ, जिसे कीर्ति स्तम्भ भी कहा जाता है, चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है। इसके करीब ही है गोमुख कुंड, एक रहस्यमयी जलधारा और प्राकृतिक स्थल, जिसे स्थानीय लोग पवित्र और शांतिप्रद मानते हैं। साथ ही पास में ही स्थित है राणा कुंभा महल, जो इतिहास प्रेमियों के लिए किसी संग्रहालय से कम नहीं।लेकिन इन सबके बीच जो सबसे आकर्षक और अपेक्षाकृत कम चर्चित स्थल है, वह है – जय स्तम्भ के पीछे की प्राकृतिक घाटी, जहाँ हरियाली, प्राचीन मंदिर और पत्थरों की छटा मिलकर एक अत्यंत सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसका महत्व
चित्तौड़गढ़ का हर हिस्सा वीरता की कहानियों से जुड़ा है। विजय स्तम्भ का निर्माण 1433 से 1448 ई. के बीच महाराणा कुंभा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर जीत के उपलक्ष्य में करवाया था। इसके आसपास के क्षेत्र को इस प्रकार विकसित किया गया कि युद्ध के समय यह एक सुरक्षित स्थान बना रहे, वहीं शांति के समय यह राजसी पर्यटन और ध्यानस्थल की भूमिका निभाए।पास में स्थित समिद्धेश्वर मंदिर में आज भी पूजा होती है, और इसकी वास्तुकला 11वीं-12वीं शताब्दी की राजस्थानी शैली की गवाही देती है।

प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरणीय महत्व
विजय स्तम्भ के करीब स्थित घाटी और हरियाली भरा इलाका पर्यटकों को एक अलग अनुभव देता है। यह इलाका वर्षा ऋतु में और भी अधिक सुंदर हो जाता है, जब हर ओर हरियाली छा जाती है और पत्थरों से बहती जलधाराएं इसे किसी हिल स्टेशन जैसा लुक देती हैं।गोमुख कुंड, जिसे ‘धरती का मुंह’ भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक जल स्रोत है, जो एक गौमुख से निकलता है। इसकी खासियत यह है कि सूखे के समय भी इसमें पानी बना रहता है। ऐसा कहा जाता है कि यह पानी भूमिगत नदियों से आता है। हिंदू मान्यता के अनुसार यह जल पवित्र होता है, और लोग यहां आकर स्नान व ध्यान करते हैं।

फोटोग्राफर्स और नेचर लवर्स के लिए स्वर्ग
इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल बनाती है। विजय स्तम्भ की पृष्ठभूमि में प्राकृतिक घाटियां, मंदिर, तालाब और हरियाली फोटोज़ में जादू भर देते हैं।सुबह और शाम का समय इस स्थल पर बिताने के लिए सर्वोत्तम होता है। सूरज की सुनहरी किरणें जब विजय स्तम्भ और उसके आसपास की दीवारों पर पड़ती हैं, तो नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देता है।

धार्मिक और ध्यान स्थल के रूप में महत्व
इस क्षेत्र में स्थित समिद्धेश्वर मंदिर और अन्य छोटे-छोटे प्राचीन मंदिर धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। कई साधक और योगी यहां ध्यान लगाने के लिए आते हैं। पर्यटक यहां की ऊर्जा और शांत वातावरण को "हीलिंग स्पेस" के रूप में अनुभव करते हैं।यह इलाका धार्मिक यात्रियों के लिए भी रुचिकर है, क्योंकि विजय स्तम्भ और इसके आसपास के मंदिर न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि आज भी इनका धार्मिक महत्व बना हुआ है।

पर्यटन की दृष्टि से कैसे पहुंचें?
चित्तौड़गढ़ रेलवे और रोड नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जयपुर, उदयपुर और कोटा से सीधी ट्रेन और बस सेवा उपलब्ध है। चित्तौड़गढ़ किले में प्रवेश के बाद गाइड या लोकल नक्शे के जरिए आप विजय स्तम्भ और इसके आस-पास के इन विशेष स्थलों तक आसानी से पहुंच सकते हैं।राजस्थान पर्यटन विभाग ने अब यहां कई सुविधाएं विकसित की हैं, जैसे पाथवे, व्यू पॉइंट्स और जानकारी पट्ट।

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