दीपावली के करीब आते ही सरहदी जिले में परंपरा और आस्था का अनोखा संगम देखने को मिलता है। मिरासी और मांगणियार समाज के लोग इन दिनों मिट्टी और बांस की लकड़ियों से पारंपरिक हटड़ी बनाने में व्यस्त हैं। यह हटड़ी केवल धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि इसे घर में शांति, सद्भाव और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, घर में हटड़ी रखने से सभी मंगल कार्य बिना किसी बाधा के पूरे होते हैं। दीपावली के दिन इसका विशेष पूजन किया जाता है और इसे घर की पूजा व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। परंपरागत रूप से मिट्टी और बांस की लकड़ियों से बनी हटड़ी ही सबसे शुभ और प्रभावशाली मानी जाती है। कहा जाता है कि यह घर को ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचाती है और घर में रिद्धि-सिद्धि का वास कराती है।
समाज के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले समय में हर घर में हटड़ी बनाना और उसका पूजन परंपरा का हिस्सा था। मिट्टी की हटड़ी विशेष रूप से शुभ मानी जाती थी और इसे बनाने में कई परिवारों की पीढ़ियों का अनुभव जुड़ा होता था। हटड़ी बनाने की कला में मिट्टी की गुणवत्ता, बांस की लकड़ियों की मजबूती और आकृति का विशेष ध्यान रखा जाता था।
हालांकि समय के साथ हटड़ी के स्वरूप में परिवर्तन आया है। अब बाजारों में कृत्रिम और धातु से निर्मित हटड़ियां भी मिलने लगी हैं। मिट्टी की हटड़ी न मिलने या बनाने में समय अधिक लगने की स्थिति में लोग इन आधुनिक विकल्पों का उपयोग करने लगे हैं। लेकिन स्थानीय लोगों और धार्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि पारंपरिक मिट्टी-बांस की हटड़ी का महत्व और मांग आज भी बरकरार है।
मिरासी और मांगणियार समाज के कारीगर बताते हैं कि दीपावली से पहले यह हटड़ी बनाने का मौसम शुरू हो जाता है। कारीगर छोटे-छोटे परिवारों से लेकर बड़े समुदायों तक अपनी कलाकारी प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना है कि हटड़ी केवल सजावटी वस्तु नहीं है, बल्कि यह परंपरा, आस्था और सामाजिक पहचान का प्रतीक है।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से हटड़ी का महत्व इतना है कि इसे घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। बच्चों और बुजुर्गों के साथ ही घर के सभी सदस्य इसे पूजा स्थल पर सजाते हैं और दीपावली के दौरान विशेष रूप से इसके पूजन का आयोजन करते हैं।
इस तरह, सरहदी जिले में दीपावली के समय मिट्टी और बांस की परंपरागत हटड़ी न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व रखती है, बल्कि यह स्थानीय कारीगरों की जीविका और कला का भी प्रतीक बन चुकी है। समय के बदलते स्वरूप और आधुनिक विकल्पों के बावजूद, पारंपरिक हटड़ी की मांग और महत्व आज भी लोगों के दिलों में गहराई से समाया हुआ है।
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