कभी बंजर और पिछड़े इलाके के नाम से पहचाने जाने वाले पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर और बालोतरा इलाके आज समृद्धि की नई कहानी लिख रहे हैं। वर्षों तक सूखे और रेत के ढेरों से जूझती यह धरती अब नर्मदा नहर के मीठे पानी और भूमिगत जल के सहारे हरियाली की नई पहचान बना चुकी है। जहां कभी बबूल और झाड़ियों के सिवा कुछ नहीं उगता था, वहां अब फसलों की लहलहाती हरियाली दूर-दूर तक दिखाई देती है।
नर्मदा नहर परियोजना के पानी ने मरुस्थलीय क्षेत्र में कृषि की दिशा और दशा दोनों बदल दी है। पहले जहां किसान केवल मानसून पर निर्भर रहते थे, अब वे सालभर रबी और खरीफ फसलें उगा रहे हैं। गेहूं, सरसों, मूंग, चना और जौ जैसी फसलें अब इस क्षेत्र की आम पहचान बन चुकी हैं।
इतना ही नहीं, यहां के किसानों ने अब बागवानी और नकदी फसलों की ओर भी रुख कर लिया है। बाड़मेर के कई इलाकों में किसान अब अनार, जीरा, मेथी, लहसुन और सब्जियों की खेती कर रहे हैं, जो उन्हें बेहतर आमदनी दे रही है। जीरे और अनार की फसल तो इस क्षेत्र की पहचान बन चुकी है, जिनकी उपज करोड़ों रुपये तक पहुंच रही है।
स्थानीय किसान बताते हैं कि पहले खेती केवल गुज़ारे भर की होती थी, लेकिन अब नर्मदा के पानी ने उनकी जिंदगी बदल दी है। बाड़मेर के किसान रतनसिंह बताते हैं, “अब हमें बारिश का इंतज़ार नहीं करना पड़ता। नहर का पानी समय पर मिल जाता है, जिससे हम दो नहीं, तीन फसलें लेने लगे हैं।”
नर्मदा नहर के साथ-साथ यहां के भूमिगत जलस्तर में भी सुधार हुआ है। कई जगहों पर किसान ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग कर पानी की बचत करते हुए उत्पादन बढ़ा रहे हैं। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में बाड़मेर और बालोतरा में खेती योग्य भूमि में 35% की वृद्धि हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में एग्री-बिजनेस और फूड प्रोसेसिंग उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं। जीरे और अनार जैसे उत्पादों की मांग न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी बढ़ रही है। सरकार भी अब इस इलाके को “मरुस्थलीय कृषि हब” के रूप में विकसित करने की दिशा में प्रयासरत है।
बाड़मेर-बालोतरा की यह नई तस्वीर अब राजस्थान के लिए प्रेरणा बन रही है। कभी जिसे बंजर कहा जाता था, वही भूमि अब हरियाली और खुशहाली का प्रतीक बन चुकी है। यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि अगर संसाधनों का सही उपयोग और किसानों को तकनीकी सहायता मिले, तो रेगिस्तान भी हरियाली की गाथा लिख सकता है।
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